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मनै, मारगि ठाक न पाइ || मनै, पति सिउ परगटु जाइ ||
मनै, मगु न चलै पंथु || मनै, धरम सेती सनबंधु ||
ऐसा नामु निरंजनु होइ || जे को मंनि जाणै मनि कोइ ||१४||
जपु जी साहिब|
यदि मनुष्य का मन नाम में लग जाए तो जिंदगी की राह में विकारों आदि की कोई रुकावट नहीं पड़ती | वह संसार में यश कमा कर सम्मान के साथ जाता है
उस मनुष्य का धर्म के साथ सीधा संबंध बन जाता है| वह फिर दुनिया के भिन्न-भिन्न धर्मों के बताए रास्तों पर नहीं चलता |
भाव, उसके अंदर यह विचार नहीं आता कि यह रास्ता अच्छा है और यह रास्ता बुरा है|
परमात्मा का नाम जो माया के प्रभाव से परे है, इतना ऊँचा है कि इस में जुड़ने वाला भी उच्च आत्मिक अवस्था वाला हो जाता है, परन्तु यह बात तब भी समझ में आती है जब कोई मनुष्य अपने मन में हरि नाम की लग्न पैदा कर के|१४|
याद की बरकत से जैसे जैसे मनुष्य का प्यार परमात्मा से बनता है, इस सिमरन रूप 'धर्म' के साथ उसका इतना गहरा सम्बन्ध बन जाता है कि कोई रुकावट उसको इस सही निशाने से हटा नहीं सकती| अन्य पग-डंडियो भी उसे कुमार्ग पर नहीं ले जा सकतीं|
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