गिआन खंड महि, गिआन परचंडु ||
तिथै, नाद बिनोद कोड अनंदु ||
ज्ञान खंड में भाव मनुष्य कि ज्ञान अवस्था में ज्ञान ही बलवान होता है | इस अवस्थ में मानों सब रागों, तमाशों, तथा कोतुकों का आनंद (स्वाद) आ जाता है |
सरम खंड की बाणी रूपु ||
तिथै घाड़ति घड़ीऐ, बहुतु अनूपु ||
ऊधम-अवस्था की बनावट सुंदरता है | भाव इस अवस्था में आकर मन दिन-बी-दिन सुंदर बनना शूरू हो जाता है | इस अवस्था में नई घाड़त के कारण मन बहुत सुंदर घड़ा जाता है |
ता किआ गला, कथीआ न जाहि ||
जे को कहै पीछै पछुताई ||
उस अवस्था की बातें ब्यान नहीं की जा सकती | यदि कोई मनुष्य ब्यान करता है ती पिछे पछताता है क्योंकि वह ब्यान करने में असमर्थ रहता है |
तिथै घड़ीऐ, सुरति मति मनि बूधि ||
तिथै घड़ीऐ, सूरा सिधा की सुधि ||३६||
उस मेहनत वाली अवस्था में मनुष्य की सुरति तथा मति घड़ी जाती है, भाव, चित्तवर्ती (सुरति) तथा मति ऊँची हो जाती है तथा मन में जाग्रति आ जाती है | सरम (श्रम) खंड में देवताओं तथा सिद्धों वाली अक्ल मनुष्य के अंदर बन जाती है |३६|
भाव:- ज्ञान अवस्था की बरकत से जैसे जैसे सारा जगत एक सांझा परिवार दिखता है , जीव प्राणियों की सेवा की मेहनत (श्रम) सिर पर उठाता है, मन की पहली तंग-दिली हटकर विशालता तथा उदारता की घाड़त में, मन नए सिरे से सुंदर घड़ा जाता है, मन में एक नई जाग्रति आती है, चित्तवर्ती ऊँची होने लगती है |
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