धरम खंड का एहो धरमु || गिआन खंड का आखाहु करमु ||
'धर्म खंड' का यही कर्तव्य है, जो पिछले अंश में बताया गया है | अब 'ज्ञान खंड' का कर्तव्य भी समझ लें जो अगली पंक्तियों में है |
नोट : गुरू नानक जी पउड़ी ३४ से ३७ तक मनुष्य कीआत्मिक अवस्था के पांच भाग बताते है : धर्म खंड , ज्ञान खंड, सरम (श्रम) खंड, कर्म खंड तथा सच्च खंड |
केते पवण पाणी वैसंतर, केते कान महेस ||
केते बरमे घाड़ति घड़ीअहि , रूप रंग के वेस ||
परमात्मा की रचना में कई प्रकार के पवन, पानी, तथा अग्नियाँ हैं, कई कर्ष्ण तथा कई शिव हैं | कई ब्रह्मा पैदा किये जा रहे हैं जिन के कई रूप, रंग तथा कई वेश हैं |
केतीआ करम भूमी, मेर केते, केते धू उपदेस ||
केते इंद् चंद सूर केते, केते मंडल देस ||
केते सिध बुध नाथ केते, केते देवी वेस ||
परमात्मा की कुदरत में अनन्त धरतियां हैं, अनन्त मेरु पर्वत हैं, अनन्त ध्रुव भक्त तथा उनके उपदेश हैं | अनन्त इंद्र देवता, अनन्त चन्द्रमा, अनन्त सूर्य तथा अनन्त भवन चक्र हैं | अनन्त सिद्ध हैं, अनन्त बुद्ध अवतार हैं, अनन्त नाथ हैं तथा अनन्त देवियों के परिधान हैं |
केते देव दानव, मुनि केते, केते रतन समुंद ||
केतीआ खाणी, केतीआ बाणी, केते पात नरिंद ||
केतीआ सुरती, सेवक केते, नानक, अंतु न अंतु ||३५||
परमात्मा की रचना में अनन्त देवता तथा दैत्य हैं, अनन्त मुनि हैं, अनन्त प्रकार के रत्नों के समुन्द्र हैं | जीव रचना की अनन्त खानें हैं, जीवों की बोलियां भी चार नहीं अनन्त बाणीयाँ हैं, अनन्त बादशाह तथा राजे हैं, अनेक प्रकार के ध्यान हैं, जो जीव मन द्वारा लगाते हैं, अनन्त सेवक हैं | हे नानक ! कोई अन्त नहीं है |३५|
भाव : मानव जन्म के फ़र्ज (धर्म) की समझ आने से मनुष्य का मन बड़ा विशाल हो जाता है | पहले एक छोटे से परिवार के स्वार्थ में बंधा हुआ यह जीव बहुत संकीर्ण ह्र्दय था | अब यह ज्ञान हो जाता है कि अनन्त प्रभु का पैदा किया हुआ यह अनन्त जगत एक बहुत बड़ा परिवार है, जिस में अनन्त क्र्ष्ण, अनन्त विष्णु, अनन्त ब्रह्मा, अनन्त धरतियां हैं | इस ज्ञान के प्रभाव से तंग-दिली हटकर इस के अंदर जगत प्यार कि लहर चलती है तथा खुशी ही खुशी बनी रहती है |
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