Monday, 3 December 2012

सुणिऐ, इसरू बरमा ....(९) जपु जी साहिब |


सुणिऐ, इसरू बरमा इंदु|| सुणिऐ, मुखि सालाहण मन्दु||
सुणिऐ, जोग जुगति तनि भेद|| सुणिऐ, सासत सिमिर्त वेद||
नानक ! भागता सदा विगासु || सुणिऐ, दूख पाप का नासु||

हे नानक ! 'नाम' से प्रेम करने वाले भक्त जनों के ह्रदय में सदा प्रफुल्लता बनी रहती है/ क्योंकि परमात्मा का गुण- कीर्तन सुनने से मनुष्य के दुखों तथा पापों का नाश हो जाता है/ परमात्मा के 'नाम' से ध्यान जोड़ने के परिणाम स्वरूप साधारण मनुष्य शिव, ब्रह्मा तथा इंद्र की पदवी पर पहुँच जाता है, बुरा मनुष्य भी मुहं से परमात्मा की बड़ाई (गुण-कीर्तन) करने लग जाता है/ साधारण बुद्धि वाले को भी शरीर की गुप्त बातें भाव, आँख, कान, जीभ आदि इन्द्रियों के कार्य व्यापार तथा उनकी विकारों की तरफ़ दौड़-भाग के भेद का पता लग जाता है, प्रभु मिलाप की युक्ति की समझ आ जाती है, शास्त्रों, स्मृतियों तथा वेदों का ज्ञान हो जाता है / 

भाव , धार्मिक पुस्तकों  का वास्तविक उच्च लक्षय तब समझ आ जाता है जब हम इस नाम में ध्यान जोड़ते हैं, नहीं तो केवल शब्दों को ही पढ लेते हैं/ उस असली भावना में नहीं पहुँचते जिस भावना में पहुँच कर उन धार्मिक पुस्तकों का उच्चारण किया होता है / 


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