सुणिऐ, सिध पीर सुरि नाथ || सुणिऐ, धरति धवल आकाश ||
सुणिऐ, दीप लोअ पाताल|| सुणिऐ, पोहि न सकै काल ||
नानक, भगता सदा विगासु|| सुणिऐ, दुख पाप का नासु||८||
हे नानक ! अकाल पुरख (परमात्मा) के नाम में ध्यान लगाने वाले भगत जनों के ह्रदय में सदा प्रफुलता बनी रहती है , क्योंकि उसका गुण कीर्तन सुनने से मनुष्य के दुखों तथा पापों का नाश हो जाता है/ यह नाम ह्रदय में बसाने की ही बरकत है कि साधारण मनुष्य सिद्धों, पीरों, देवताओं तथा नाथों की पदवी प्राप्ति कर लेते हैं/ तथा उनको यह ज्ञान हो जाता है कि धरती, आकाश, का आसरा वह प्रभु है जो सारे दीपों, लोकों तथा पातालों में व्यापक है/८/
भाव : गुण कीर्तन में जुड़कर साधारण मनुष्य भी उच्च आत्मिक पद पर पंहुच जाते हैं / उनको प्रत्यक्ष प्रतीत होता है कि प्रभु सारे खंड ब्रम्न्द्द में व्यापक है त्तथा धरती आकाश का आश्रय है/ इस प्रकार सर्वत्र प्रभु का दीदार होने से उनको मौत का डर भी प्रभावित नहीं करती /
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