भुगति गिआनु, दइआ भंडारणि, घटि घटि वाजहि नादि ||
आपि नाथु, नाथी सभ जा की, रिधि सिधि अवरा साद ||
संजोगु विजोगु दुइ कार चलावहि, लेखे आवहि भाग ||
हे योगी ! यदि परमात्मा की सर्व व्यापकता का ज्ञान तेरे लिये भंडारा चूरमा हो, दया इस ज्ञान रूप भंडारे को बांटने वाली हो, प्रत्येक जीब के अंदर जो जिंदगी की रौ चल रही है, भंडारा खाते समय तेरे अंदर यह नाडी बज रही हो, तेरा नाथ आप परमात्मा हो, जिस के वश में सारी सृष्टि है, तब कूड़ की दीवार तेरे अंदर से टूट जाने पर परमात्मा से तेरी दूरी मिट सकती है | योग साधना द्वारा प्राप्त हुई ऋद्धियाँ, सिद्धियाँ व्यर्थ हैं, ये ऋद्धियाँ तथा सिद्धियाँ तो किसी अन्य ओर ले जाने वाले स्वाद हैं | परमात्मा को 'संजोग' सत्ता तथा 'विजोग' सत्ता दोनों मिल कर इस संसार के व्यावार को चला रही हैं भाव, पिछले संजोगों के कारण परिवार आदि के जीव यहाँ आकर एकत्र होते हैं | रज़ा में बिछुड बिछुड कर आपनी अपनी बारी यहाँ से चले जाते हैं | रज़ा जीवों के किये कर्मों के लेखे के अनुसार दर्जा-बा-दर्जा सुख-दूख के हिस्से मिल रहे हैं यदि यह विशवास बन जाये तो अंदर से कूड़ की दीवार टूट जाती है |
आदेसु तीसै आदेसु ||
आदि अनिलु अनादि अनाहति, जुगु जुगु एको वेसु ||੨੯||
जो कूड़ (असत्य) की दीवार को दूर करने के लिये केवल उस परमात्मा को प्रणाम करें जो सब का आदि है, जो शुद्ध स्वरूप है, जिस का कोई मूल नहीं ढूँढ सकता , जो नाश रहित है तथा जो सदा ही एक जैसा रहता है |२੯||
भाव :- सिमरन की बरकत से यह ज्ञान पैदा होगा कि प्रभु प्रत्येक स्थान पर भरपूर है तथा सब का स्वामी है | उसकी रज़ा में जीव यहाँ एकत्र होते हैं, तथा रज़ा में ही यहाँ से चले जाते हैं | यह ज्ञान पैदा होने से जीवों के साथ प्यार करने का तरीका आएगा |योग-अभ्यास के द्वारा प्राप्त होई ऋद्धियाँ तथा सिद्धियाँ को ऊँचा जीवन समझ लेना भूल है | यह तो कुमार्ग पर ले जाती हैं | इसकी सहायता से योगी लोग साधारण जनता पर दबाव डालकर उनको इंसानियत से गिराते हैं |
जो कूड़ (असत्य) की दीवार को दूर करने के लिये केवल उस परमात्मा को प्रणाम करें जो सब का आदि है, जो शुद्ध स्वरूप है, जिस का कोई मूल नहीं ढूँढ सकता , जो नाश रहित है तथा जो सदा ही एक जैसा रहता है |२੯||
भाव :- सिमरन की बरकत से यह ज्ञान पैदा होगा कि प्रभु प्रत्येक स्थान पर भरपूर है तथा सब का स्वामी है | उसकी रज़ा में जीव यहाँ एकत्र होते हैं, तथा रज़ा में ही यहाँ से चले जाते हैं | यह ज्ञान पैदा होने से जीवों के साथ प्यार करने का तरीका आएगा |योग-अभ्यास के द्वारा प्राप्त होई ऋद्धियाँ तथा सिद्धियाँ को ऊँचा जीवन समझ लेना भूल है | यह तो कुमार्ग पर ले जाती हैं | इसकी सहायता से योगी लोग साधारण जनता पर दबाव डालकर उनको इंसानियत से गिराते हैं |
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