परमात्मा के हुक्म में कोई मनुष्य अच्छा बन जाता है,कोई बुरा।
उसके हुक्म में ही अपने किये हुये कर्मों के लिखे अनुसार दु:ख तथा सुख भोगे जाते हैं ।
हुक्म में ही कई मनुष्यों पर अकाल पुरख (परमात्मा) के दर से कृपा होती है।
उसके हुक्म में ही कई मनुष्य नित्य जन्म-मरन के चक्र मे घुमाये जाते हैं ।
गुरमखि नादं, गुरमुखि वेदं, गुरमुखि रहिआ समाई।।
गुरु ईसरु, गुरु गोरखु बरमा, गुरु पारबती माई।।
उसके हुक्म में ही अपने किये हुये कर्मों के लिखे अनुसार दु:ख तथा सुख भोगे जाते हैं ।
हुक्म में ही कई मनुष्यों पर अकाल पुरख (परमात्मा) के दर से कृपा होती है।
उसके हुक्म में ही कई मनुष्य नित्य जन्म-मरन के चक्र मे घुमाये जाते हैं ।
गुरमखि नादं, गुरमुखि वेदं, गुरमुखि रहिआ समाई।।
गुरु ईसरु, गुरु गोरखु बरमा, गुरु पारबती माई।।
गुरू ही हमारे लिये शिव है, गुरू ही हमारे लिये गोरख तथा ब्रहमा है तथा गुरू ही हमारे लिये माई पार्वती है।...
जे हउ जाणा, आखा नाही, कहणा कथनु न जाई।।
गुरा, इक देहि बुझाई।।
सभना जीआ का इकु दाता, सो मै विसरि न जाई।।५।।
वैसे परमात्मा के इस हुक्म को यदि मैं समझ भी लूँ तो भी उस का वर्णन नहीं कर सकता। अकाल पुरख (परमात्मा) के हुक्म का कथन नहीं किया जा सकता। मेरी तो हे सतगुरू ! तेरे आगे प्रार्थना है कि मुझे एक समझ दे कि जो सब जीवों को देह पदार्थ देने वाला एक परमात्मा है, मैं उसको भुला न दूँ ।५।
भाव : प्रेम को मन में बसा कर जो मनुष्य प्रभु की याद में जुड़ता है, उसके हृदय में सदा सुख तथा शांति का निवास होता है। परन्तु यह याद , यह बन्दगी गुरू से मिलती है। गुरू ही यह दृढ़ कराता है कि प्रभु सर्वत्र बस रहा है, गुरू द्वारा ही जीव की प्रभु से दूरी समाप्त होती है। तब तो गुरू से ही बंदगी की दाति मांगें ।
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