सुणिऐ, सतु संतोखु गिआनु।। सुणिऐ, अठसठि का इसनानु।।
सुणिऐ, पढ़ि पढ़ि पावहि मानु।। सुणिऐ, लागै सहजि धिआनु।
नानक, भगता सदा विगासु।। सुणिऐ, दूख पाप का नासु।।१०।।
हे नानक ! परमात्मा के नाम में ध्यान जोड़ने वाले भक्त जनों के हृदय में सदा प्रफुल्लता बनी रहती है, क्योंकि परमात्मा का
गुण-कीर्तन सुन ने से मनुष्य के दुखों तथा पापों का नाश हो जाता है।
प्रभु के नाम में जुड़ने से हृदय मे् दान देने के स्वभाव संतोष तथा प्रकाश प्रकट हो जाता है, मानों अड़सठ तीर्थों का स्नान ही
हो जाता है भाव, अड़सठ तीर्थों के स्नान नाम जपने मे् ही आ जाते हैं । जो सत्कार मनुष्य विद्मा पढ़ कर प्राप्त करते हैं, वह भक्त जनों को परमात्मा के नाम मे् जुड़ कर ही मिल जाता है। नाम सुन ने में अडोलता मे चित्तवृति टिक जाती है।१०।
नाम में ध्यान जोड़ने से ही मन विशाल होता है, ज़रुरतमंदों की सेवा तथा सतोष वाला जीवन बनता है। नाम में डुबकी ही अड़सठ तीर्थों का स्नान है, जगत के किसी मान-सम्मान की प्रवाह नही रह जाती, मन सहज-अवस्था में, अडोलता मे
मग्न रहता है।
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