हुकमी होवनि आकार, हुकमु न कहिआ जाई।।
हुकमी होवनि जीअ, हुकमि मिलै वडिआई।।
हुकमी होवनि जीअ, हुकमि मिलै वडिआई।।
पद अर्थ : अकाल पुरख (परमात्मा) के हुक्म अनुसार सारे शरीर बनते हैं, (परन्तु यह) हुक्म बताया नहीं जा सकता कि कैसा है। परमात्मा के हुक्म अनुसार ही सारे जीव जन्म लेते हैं तथा हुक्म अनुसार ही (परमात्मा के दर पर) शोभा मिलती है।
हुकमी उतमु नीचु, हुकमि लिखि दुख सुख पाईअहि।।
इकना हुकमी बखसीस, इकि हुकमी सदा भवाईअहि।।
परमात्मा के हुक्म से कोई मनुष्य अच्छा (बन जाता है) कोई बुरा। उसके हुक्म में ही (अपने किये हुये कर्मों के) लिखे अनुसार दुख तथा सुख भोगते हैं। हुक्म में ही कई मनुष्यों पर (अकाल पुरख के दर से) कृपा होती है, तथा उसके हुक्म में ही कई मनुष्य नित्य जन्म-मरन के चक्र में घुमाये जाते हैं ।
हुक्मै अंदर सभु को, बाहरि हुक्म न कोइ||
नानक हुक्मै जे बुझै, त हउमै कहै न कोइ||
प्रत्येक जीव परमात्मा के हुक्म में ही है, कोई जीव हुक्म से बाहर ( भाव, हुक्म से बेमुख ) नहीं हो सकता/ हे नानक ! यदि कोई मनुष्य परमात्मा के हुक्म को समझ ले तो फिर वह स्वार्थ की बातें नहीं करता (भाव, फिर वह स्वार्थी जीवन को छोड़ देता है)/२/
भाव : प्रभु के हुक्म का सही स्वरुप ब्यान नहीं किया जा सकता, परन्तु जो मनुष्य इस हुक्म में चलता है, वह उदार हो जाता है (संकीर्ण-मन नहीं रहता )/
जपु जी साहिब / टीका : प्रो. साहिब सिंह जी (डी. लिट.)
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