आसणु लोइ लोइ भंडार || जो किछु पाइआ, सु एका वार ||
करि करि वेखै सिरजणहारु || नानक, सचे की साची कार ||
परमात्मा के भंडारों का ठिकाना प्रत्येक भवन में है भाव प्रत्येक भवन में परमात्मा के भंडारे चल रहे हैं | जो कुछ परमात्मा ने उन भंडारे में डाला है, एक बार ही दाल दिया है, भाव, उसके भंडारे सदा भरे हैं | सृष्टि को पैदा करने वाला परमात्मा जीवों को पैदा करके उनकी देखभाल कर रहा है |
हे नानक ! सदा सदा अटल रहने वाले परमात्मा का सृष्टि की संभाल वाला यह व्यवहार कार सदा अटल है |
आदेसु, तीसै आदेसु ||
आदि अनिलु अनादि अनाहति, जुगु जुगु एको वेसु ||३१||
केवल उस परमात्मा को प्रणाम करें जो सब का मूल है, जो शुद्ध स्वरूप है, जिस का कोई मूल नहीं खोज सकता, जो नाश-रहित है तथा जो सदा ही एक-सा रहता है | यही तरीका है, जिस से उस प्रभु की दूरी मिट जाती है |३१|
भाव:- बंदगी की बरकत से ही यह समझ आती है की चाहे परमात्मा की पैदा हुई सृष्टि अनन्त है फिर भी उसका पालन करने के लिये उसके भंडारे भी अनन्त हैं, कभी समाप्त नहीं हो सकते | परमात्मा के इस रास्ते में कोई बाधा नहीं पड़ सकती |
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