जे जुग चारे आरजा , होर दसूणी होइ ||
नवां खंडा विचि जाणीऐ, नालि चलै सभु कोइ||
यदि किसी मनुष्य की आयु चार युगों जितनी हो जाए , केवल इतनी ही नहीं बल्कि यदि इससे भी दस गुणा अधिक आयु हो जाए, यदि वह सारे संसार में भी प्रगट हो जाए तथा प्रत्येक मनुष्य उसके पीछे लग कर चलें
पर यदि वह बंदगी के गुण से हीन है, तो प्रभु की क्रपा का पात्र नहीं बन सकता /
चंगा नाउ रखाइ कै जसु कीरति जगि लेइ।।
जे तिसु नदरि न आवई त वात न पुछै के।।
कीटा अंदरि कीटु, करि दोसी दोसु धरे।
अर्थ : अगर मनुष्य अच्छा यश कमाकर सारे संसार में शोभा भी प्राप्त कर ले, परन्तु यदि परमात्मा की कृपा- दृष्टि में नहीं आ सकता, तो वह उस मनुष्य जैसा है जिसकी कोई बात नहीं पूछता । भाव, इतने मान- सम्मान वाला होते हुए भी असल में निराक्षय ही है । बल्कि ऐसा मनुष्य परमात्मा के सामने एक मामूली सा कीड़ा है। परमात्मा उस को दोषी निर्धारित करके उस पर 'नाम' भूलने का दोष लगाता है ।७।
नानक निरगुणि गुणु करे गुणवंतिआ गुणु दे।।
तेहा कोइ न सुझई, जि तिसु गुणु कोइ करे।।७।
हे नानक ! वह परमात्मा गुणहीन मनुष्य में गुण पैदा कर देता है तथा गुणी मनुष्यों को भी गुण देने की कृपा वही करता है। ऐसा अन्य कोई नहीं दिखाई देता, जो निर्गुण जीव को कोई गुण दे सकता हो । प्रभु की कृपा दृष्टि ही उसको ऊँचा कर सकती है, लम्बी उमर तथा जगत की शोभा सहायता नहीं करती।७।
भाव : प्राणायाम की सहायता से दीर्घ आयु कर जगत में चाहे मनुष्य का मान-आदर बन जाये, पर यदि वह बंदगी के गुण से हीन है, तो प्रभु की कृपा का पात्र नहीं बना। प्रभु की दृष्टि मं तो वह नाम हीन जीव एक छोटा-सा कीड़ा है। यह बंदगी वाला गुण जीव को प्रभु की कृपा से ही मिल सकता है।
पर यदि वह बंदगी के गुण से हीन है, तो प्रभु की क्रपा का पात्र नहीं बन सकता /
चंगा नाउ रखाइ कै जसु कीरति जगि लेइ।।
जे तिसु नदरि न आवई त वात न पुछै के।।
कीटा अंदरि कीटु, करि दोसी दोसु धरे।
अर्थ : अगर मनुष्य अच्छा यश कमाकर सारे संसार में शोभा भी प्राप्त कर ले, परन्तु यदि परमात्मा की कृपा- दृष्टि में नहीं आ सकता, तो वह उस मनुष्य जैसा है जिसकी कोई बात नहीं पूछता । भाव, इतने मान- सम्मान वाला होते हुए भी असल में निराक्षय ही है । बल्कि ऐसा मनुष्य परमात्मा के सामने एक मामूली सा कीड़ा है। परमात्मा उस को दोषी निर्धारित करके उस पर 'नाम' भूलने का दोष लगाता है ।७।
नानक निरगुणि गुणु करे गुणवंतिआ गुणु दे।।
तेहा कोइ न सुझई, जि तिसु गुणु कोइ करे।।७।
तेहा कोइ न सुझई, जि तिसु गुणु कोइ करे।।७।
हे नानक ! वह परमात्मा गुणहीन मनुष्य में गुण पैदा कर देता है तथा गुणी मनुष्यों को भी गुण देने की कृपा वही करता है। ऐसा अन्य कोई नहीं दिखाई देता, जो निर्गुण जीव को कोई गुण दे सकता हो । प्रभु की कृपा दृष्टि ही उसको ऊँचा कर सकती है, लम्बी उमर तथा जगत की शोभा सहायता नहीं करती।७।
भाव : प्राणायाम की सहायता से दीर्घ आयु कर जगत में चाहे मनुष्य का मान-आदर बन जाये, पर यदि वह बंदगी के गुण से हीन है, तो प्रभु की कृपा का पात्र नहीं बना। प्रभु की दृष्टि मं तो वह नाम हीन जीव एक छोटा-सा कीड़ा है। यह बंदगी वाला गुण जीव को प्रभु की कृपा से ही मिल सकता है।
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