Thursday, 20 December 2012

मुंदा संतोख, सरमु पतु ...(२८),,जपु जी साहिब|


मुंदा संतोख, सरमु पतु झोली, धिआन की करहि बिभूति ||
खिंथा कालु, कुआरी काइआ जुगति, डंडा परतीति ||

हे योगी ! यदि तू संतोष को अपनी मुद्राएं (कान में डालनी वाली) बनाए, मेहनत को बर्तन तथा झोली, और परमात्मा के ध्यान को शरीर पर लगाई जाने वाली राख, मौत का डर तेरी गोदड़ी हो, शरीर को विकारों से बचाकर रखना तेरे लिये योग की  रहत (मर्यादा) हो तथा श्रदा को डंडा बनाए तो अंदर से कूड़ (असत्य) की दीवार टूट सकती है |

आई पंथी, सगल जमाती, मनि जीतै जगु जीतु ||
आदेसु तीसै आदेसु ||
आदि अनिलु अनादि  अनाहति, जुगु जुगु एको वेसु ||

जो मनुष्य सारी सृष्टि के जीवों को अपने सज्जन मित्र समझता है, असल में वही आई पंथ वाला है | यदि अपना मन जीत लिया जाये तो सारा जगत जीत  लिया जाता है भाव, तब जगत की माया परमात्मा से प्रथक नहीं कर सकती | इसलिये कूड़ (असत्य) की दीवार को दूर करने के लिये केवल उस परमात्मा को प्रणाम करें जो सब का आदि है, जो शुद्ध स्वरूप है, जिस का कोई मूल नहीं ढूँढ सकता , जो नाश रहित है तथा जो सदा ही एक जैसा रहता है |२८|

भाव :- योग मत के खिंथा, मुद्रा, झोली आदि प्रभु के जीव की दूरी मिटाने में समर्थ नहीं है | ज्यों ज्यों अटल प्रभु की याद में जुडेंगे, संतोष वाला जीवन बनेगा, सत्य की मेहनत करने की आदत बनेगी, मौत सिर पर याद रहेगी तथा विकारों से बचे रहेंगे, प्रभु की हस्ती में विशवास बनेगा तथा सारे जीवों में  वह प्रभु बसता दिखाई देगा | 



गुरू नानक, जपु जी साहिब |२८ | 

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