Monday, 30 May 2016

स्त्री और व्रत

#स्त्री_और_व्रत ।(Chapter-19) 30516
                   गुरु नानक जी के आगमन से पहले हमारा समाज विभन्न जातियों में बंटा हुआ था। छोटी जाति के लोगों पर सेवकों जैसा व्यवहार किया जाता था । ऐसा ही हाल स्त्री का भी था । उन्हें भी सेवक, दासी और उपभोग की वस्तु से जाना जाता था । छोटी जाति और स्त्री वर्ग को शिक्षा से भी दूर रखा जाता था । स्त्री, पुरानी प्रथा के अनुसार पैदा होते ही अपना बचपन पिता, शादी के बाद अपने पति के अधीन तथा पति मृतु के बाद मृतक शरीर के साथ जिन्दा जला देने की मजबूरी पर  निर्भर रहती थी । स्त्री का कोई अपना वज़ूद, आजादी और इच्छाएं नहीं थी । क्योंकि समाज पुरुष प्रधान था । पर्दे में रहना,सती प्रथा, व्रत रखना, बाल विवाह तथा बिना धर्मिक शिक्षा और गुलामों सा जीवन ही उनकी रोजमर्या की किर्या थी ।
                 स्त्री समाज की इस भयानक दशा के प्रति गुरु नानक देव जी ने पहली बार आवाज उठाई तथा उन्हें पुरुष से भी बड़ा दर्जा दिया ।  गुरु जी ने अपनी बाणी से समझाया की यह बड़े बड़े राजाओं, सन्तों तथा महापुरुषों की जन्म दाता है । इसे नीच जाति कैसे कहा जा सकता है ।
  सो किउ मंदा आखीऐ, जितु जमिह राजान ।।

                  गुरु ग्रन्थ साहिब में स्त्री के बराबर होंने की बात कही है तथा पाखंडों, अंधविश्वासों, व्रतों आदि को भी करने से रोका है ।  विभन्न प्रकार के व्रत जिनमें सारा दिन भूखे प्यासे रहना (करवा चौथ) अधिक प्रचलित है। जिसको रखने से पति की उम्र लंबी होना बताया जाता है, को पाखण्ड कहा गया है  ।
       अनु न खाहि देही दुखु दीजै ।।
       बिन गुर गिआन त्रिपति नही थीजै ।।

       छोडहि अनु करहि पाखंड ।।
       ना सोहागनि न ओहि रंड ।।

           जिस किसी ने गुरु जी की शिक्षा को समझा है उसमें कइयों ने सिख इतिहास में अपनी  दिलेरी और हिम्मत के साथ साबित करके दिखाया है कि वो गुरु जी द्वारा दिए गए पांच ककारों, जिनमें कृपाण प्रमुख है, में लैस होकर पुरुषों की बराबरी में रहकर अपनी तथा दूसरे कमजोर व गरीब की रक्षा के लिये, शेरनी बनकर मुकाबला कर सकती हैं ।
             गुरु जी की स्त्रियों को प्रेरणा है कि यदि व्रत रखना है तो अवगुण व बुराई छोड़ने का रखो । यदि त्याग करना है तो विकारों व अंध विशवास का करो ।

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