गंभीरता से सोचने वाली बात है कि *गीता* में लिखा है, कि आत्मा ना तो पानी में डूब सकती है, ना ही हवा में उड़ सकती है, और ना ही अग्नि में जल सकती है । अर्थात आत्मा का किसी भी तत्व का कोई प्रभाव नहीं पड़ता । आत्मा अमर है । जिस तरह इंसान कपड़े बदलता है, वैसे ही आत्मा शरीर बदलती है ।
चलो मान लेते हैं, परन्तु जब किसी पापी को नर्क में सज़ा दी जाती है, वो कैसे दी जाती है ? क्योंकि शरीर तो धरती पर नष्ट कर दिया जाता है तथा आत्मा पर किसी तत्व का प्रभाव नहीं पड़ता तो फिर लोगों को स्वर्ग का लालच और नर्क का डर क्यों दिखाया जाता है ?
स्पष्टीकरण;- देखो, "आत्मा शरीर बदलती है" का भावर्थ है कि "आत्मा,यह शरीर छूट जाने पर दूसरा शरीर धारण कर लेती है" *बदलती है* शब्दों पर ध्यान दें ! जब एक शरीर को त्याग दिया तथा दूसरा शरीर धारण कर लिया तो जीव के सुख-दुख नए शरीर के जरिये हैं । इस शरीर में आप सुख-दुख महसूस करते हो कि नहीं? जिस तरह इस शरीर में सुख-दुख महसूस करते हो, उसी तरह बदले हुए शरीर से भी सुख-दुख भुगता जाता है । इस में कोई दुविधा वाली बात नज़र नहीं आ रही है ।
प्रश्न तो सीधा यह बनता है कि
जब आत्मा को कोई सुख-दुख नहीं तो इस शरीर को त्यागने के बाद सुख-दुख किसको है ? उत्तर बहुत सीधा है कि एक शरीर को त्यागने के बाद आत्मा दूसरा शरीर धारण कर लेती है । दूसरा शरीर धारण करने पर उस नए शरीर के जरिये जीव को सुख-दुख उसी तरह से है जैसे अब इस शरीर में है ।
आत्मा, मन, जीवन अवस्था, चेतन अवस्था, ये कई संकल्प हैं जिनके बारे में हमें अपनी नास्तिक सोच को दूर रख कर अध्य्यन की आवश्यकता है ।
नोट;- कुछ गुरमत प्रेमियों को लग सकता है कि मैं *गीता* की फिलोसफी का समर्थन कर रहा हूँ । इसलिये यह दुविधा दूर कर दूँ कि गुरमत भी परमात्मा की तरह आत्मा को अविश्वासी मानती है;-
"गोंड् महला ५ ।।
अचरज कथा महा अनूप ।।
प्रात्मा पारब्रहम का रूप ।। रहाउ ।।
बूडा ना इह बाला ।।
ना इस दूखु नही जम जाला ।।
ना इहु बिनसै ना इहु जाइ ।।
आदि जुगादी रहिआ समाइ ।।१ ।।.....
(पन्ना ८६८)
पर हिन्दू मत तथा गुरमत में फर्क यह है कि हिन्दू मत के अनुसार परमात्मा की तरह जीव आत्मा भी अनादि है । अर्थात आत्मा का प्रभु से पृथक अस्तित्व है । इसलिये प्रभु जैसे गुण प्राप्त होने के बावजूद आत्मा, परमात्मा से एकमय नहीं हो सकती ।
पर गुरमत अनुसार जीव आत्मा प्रभु का ही एक अंश है । प्रभु का अंश होने से प्रभु जैसे गुण हासिल करके यह प्रभु में ही समाने के योग्य हो सकती है ।
“ਗੋਂਡ ਮਹਲਾ ੫ ॥ ਅਚਰਜ ਕਥਾ ਮਹਾ ਅਨੂਪ ॥ ਪ੍ਰਾਤਮਾ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਕਾ ਰੂਪੁ ॥ ਰਹਾਉ ॥
ना ਇਹੁ ਬੂਢਾ ਨਾ ਇਹੁ ਬਾਲਾ ॥ ਨਾ ਇਸੁ ਦੂਖੁ ਨਹੀ ਜਮ ਜਾਲਾ ॥ ਨਾ ਇਹੁ ਬਿਨਸੈ ਨਾ ਇਹੁ ਜਾਇ ॥ ਆਦਿ ਜੁਗਾਦੀ ਰਹਿਆ ਸਮਾਇ ॥੧॥ ਨਾ ਇਸੁ ਉਸਨੁ ਨਹੀ ਇਸੁ ਸੀਤੁ ॥ ਨਾ ਇਸੁ ਦੁਸਮਨੁ ਨਾ ਇਸੁ ਮੀਤੁ ॥ ਨਾ ਇਸੁ ਹਰਖੁ ਨਹੀ ਇਸੁ ਸੋਗੁ ॥ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਇਸ ਕਾ ਇਹੁ ਕਰਨੈ ਜੋਗੁ ॥੨॥ ਨਾ ਇਸੁ ਬਾਪੁ ਨਹੀ ਇਸੁ ਮਾਇਆ ॥ ਇਹੁ ਅਪਰੰਪਰੁ ਹੋਤਾ ਆਇਆ ॥ ਪਾਪ ਪੁੰਨ ਕਾ ਇਸੁ ਲੇਪੁ ਨ ਲਾਗੈ ॥ ਘਟ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਸਦ ਹੀ ਜਾਗੈ ॥੩॥ ਤੀਨਿ ਗੁਣਾ ਇਕ ਸਕਤਿ ਉਪਾਇਆ ॥ ਮਹਾ ਮਾਇਆ ਤਾ ਕੀ ਹੈ ਛਾਇਆ ॥ ਅਛਲ ਅਛੇਦ ਅਭੇਦ ਦਇਆਲ ॥ ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਸਦਾ ਕਿਰਪਾਲ ॥ ਤਾ ਕੀ ਗਤਿ ਮਿਤਿ ਕਛੂ ਨ ਪਾਇ ॥ ਨਾਨਕ ਤਾ ਕੈ ਬਲਿ ਬਲਿ ਜਾਇ ॥੪॥੧੯॥੨੧॥ {ਪੰਨਾ 868}”
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