Tuesday, 26 July 2016

राहगीर

#राही ।

यह रास्ता किधर जाता है ?
रास्ता यहीं है । राही चलता है ।

तो हम राही हैं ।
राही तो दो ही हैं ।
एक सूरज दूसरा चन्द्रमा ।
तुम कौन से राही हो ?

हम अतिथि हैं ।
अतिथि दो ही हैं ।
एक धन दूसरा योवन ।
तुम कौन से अतिथि हो?

हम सामर्थ (योग्य) हैं ।
योग्य तो पृथ्वी है या स्त्री ।
तुम में क्या योग्यता है ?

हम 'संत' हैं ।
संत तो दो हैं ।
एक शील दूसरा सन्तोष ।
सच सच बोलो तुम कौन हो?

हम परदेसी हैं ।
परदेसी तो दो हैं
एक जीव है या पेड़ का पत्ता ।

अब क्या कहूँ,
मैं हार गया ।
हारते तो दो हैं ।
एक ऋणी दूसरा बेटी का बाप ।

तुम कौन हो?
मैं स्वंय नहीं जानता।
सच यह है ।
सच तो परमात्मा है ।

तुम तो अहंकारी हो ।
विद्धवान और ऐश्वर्य  के।
भविष्य में अहंकार मत करना ।
ठीक कहा, मैं सामान्य ही व्यक्ति हूँ ।

Gurmeet Singh Gambhir

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