एक नास्तिक के सवाल और गुरमत के उत्तर ।
संयोग के विषय में एक बात का चलन है कि "संयोग ऊपर (धुरी) से लिखे होते है ।"
यह बात कितनी सच्ची है ?
या फिर परमात्मा जोड़ियां बना के भेजता है ?
यदि मान लिया जाए कि परमात्मा संयोग लिखता है तो परमात्मा अधिकतर लड़के और लड़की की जोड़ी उसकी जाति से बाहर क्यों नहीं जोड़ता ?
दूसरा; क्या परमात्मा संयोग लिखते हुए DATA वी UPDATE करता है ? जैसे, भारत-पाकिस्तान के विभाजन के पहले लुधियाना का लड़का और लाहौर की लड़की से विवाह हो जाता था । अब क्यों नहीं ?
तीसरा; यदि परमात्मा संयोग बनाता है तो तलाक वाला कॉलम भी साथ लिख के भेजता है कि चलो ! आज तुम्हारा विवाह करवा देते हूँ, पर कल दो चार महीनें में मैं ही तलाक करवाऊं ?
नास्तिक का स्पष्टीकरण; परमात्मा किसी का कुछ नहीं लिखता । यह तो केवल हमारे धर्म चलाने वालों ने प्रभु को *हउआ* बनाकर भोली भाली, निधान, गरीब तथा अनपढ़ जनता को अपनी रोज़ी-रोटी बनाने की खातिर ऐसी मनगढंत बातें बनाई हैं, बस और कुछ नहीं । विवाह या रिश्ता केवल परिस्थिति (circumstances) हैं । हम जो जैसे हालात बना लेते हैं, वैसा रिश्ता जुड़ जाता है । केवल इंसान ही अपने कर्मों से हालात कैसे बनाता है वो उसी पर निर्भर है । यह कहीं नहीं लिखा है । बस, ये बातें मांग कर खाने वालों ने स्वंय बनाई हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है ।
गुरु ग्रन्थ साहिब (गुरमत) के अनुसार "जो किछु वरतै सभ तेरी रजाइ ।।"--
-"तुधु आपे भावै सोई वरतै जी तूं आपे करहि सु होई ।।" --
जो किछु वरतै सभ तेरा भाणा ।।"
को मानते तो ऐसा नहीं सोचते ।
प्रश्न है कि "परमात्मा किसी का कुछ नहीं लिखता" ।
गुरबाणी कहती है कि;-
"मन रे गुरमुखि नामु धिआइ ।।
धूरि पूरबि **करतै लिखिआ**.तिना गुरमति नामि समाइ ।।१।।रहाउ।। (६५)"
"हरि तिन का दरसनु ना करहु जो दूजै भाइ चितु लाई ।।
धूरि **करतै आपि लिखि पाइआ** तिसु नालि किहु चारा नाही ।।" (३०९)
"अंतरि प्रीतम वसिआ धूरि करमु **लिखिआ करतारि**।।" (५५१)
गुरबाणी की उपरोक्त पंक्तियाँ स्पष्ट रूप में कह रही हैं कि **करते ने लिखा है** ।
और देखो!
"संजोगी मिलि एकसे विजोगी उठि जाइ ।।"
"करण करावनहार सुआमी आपन हाथि संजोगी ।।१।।
संयोग-वियोग उस परमात्मा के हाथ है ।यह गुरु का फुरमान है । और आप कहते हो कि यह बात मांग कर खाने वालों ने बनाई है ।
स्पष्ट है कि रिश्ते उस परमात्मा के हुकुम से बनते बिगड़ते हैं । तलाक होना भी उसी का भाणा (मर्जी) है ।
अगला प्रश्न था कि विवाह या रिश्ते केवल परिस्थिति (circumstances) हैं ।
गुरमत अनुसार;
"जिऊ संपै तिऊ बिपति है **बिध ने रचिआ सो होइ**"।।"
नर चाहत कछु अउर अउरै की अउरै भई । "
"मता करै पछम कै ताई पूरब ही लै जात ।।
खिन महि थापि उथापनहारा आपन हाथि मतात ।।"१।।
सिआनप काहू कामि न आत ।।
जो अनरूपिउ ठाकुरि मेरै होइ रही उहु बात ।।" रहाउ ।।
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