हे परमात्मा !
यदि तुम स्वयं अपने गुण मेरे में पैदा ना करो तो मेरे से भक्ति नहीं हो सकती ।
मेरी कोई हस्ती नहीं कि मैं
आपके गुण गा सकूँ,
यह सब आपकी ही कर्पा है ।
हे निरंकार !
तेरी सदा ही जय हो !
तूँ आप ही माया हैं ,
आप ही वाणी हैं ,
तूँ आप ही ब्रह्मा हैं,
भाव यह सृष्टि को बनाने वाले माया, वाणी, या बरह्मा तुझसे अलग हस्ती वाले नहीं हैं, जो लोगों ने मान रखे हैं ।
तूँ सदा ही स्थिर है, सुन्दर है,
तेरे मन में सदा ही खुशहाली है ।
तूँ ही जगत रचने वाला हैं,
तुझे ही जानकारी है कि तुम कैसे बने ।
(जपु जी साहिब)
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