मेरा शरीर,
काम क्रोध से भरा,
सच्चे संतों से मिलने से
इनका नाश हो जाता है ।
धुर से लिखी वाणी द्वारा
गुरु को प्राप्त किया है ।
'मन' प्रेम-मंडल में टिक गया है।
सच्चे संतों के समक्ष हाथ जोड़ो,
उनकी दंडोत वंदना करो ।
यह बहुत बड़ा पुण्य है ।
पापियों ने हरि के रस का
स्वाद नहीं चखा ।
उनके अन्दर अहंकार का काँटा ।
जैसे-जैसे वह चलते है,
काँटा उनको चुभता है ।
वह दुःख पाते हैं,
वो सिर के ऊपर
मौत का डंडा सहते है ।
हरि के भक्त,
हरि के नाम में लीन ।
उनके जन्म-मरण का दुःख
भय दूर हो जाता है ।
उन्होंने नाश रहित प्रभु,
प्राप्त कर लिया है ।
उनकी सृष्टि के सब,
सुशोभित होते है ।
मैं गरीब व् निमाना हूँ ।
हे प्रभु ! मैं तेरा हूँ ,
मेरी रक्षा करो,
हे हरि! तूं बड़ों से बड़ा है,
दास नानक के लिए '
'नाम' ही सहारा है
हरि के नाम कारण ही
सुख मिलता है ।
कामि करोधि नगरु बहु भरिआ....।।
रचना: गुरु राम दास जी, राग: गोड़ी पुरबी, बाणी: कीर्तन सोहेला,SGGS पेज.13
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