Monday, 26 June 2017

Door bell

कभी कभी छोटी सी आकस्मिक धटना जो आम जीवन में अक्सर घटती है। करने में कोई गौर न करें, पर हर समय चिंतन अवस्था में जीने वाले व्यक्ति को एक सबब दे जाती हैं,जो उसकी लेखनी कथनी ,करनी का आधार बनती है जिससे आम व्यक्ति को सरल तरीके से समझाने में मदद हो सके।

यह भी जो लिखने की फीलिंग आई, वो  भी मेरे एक अज़ीज़ दोस्त Darshan Singh जी की उस पोस्ट से आई, जिसमें उन्होंने लिखा कि घर के गेट से डोरबेल बजी, तो मेरे पत्नि को पूछने पर बताया गया कि युहीं कोई मांगने वाला था, टाल दिया, पत्नी अपने किसी काम से बिजी हो गई, मैं अपने लिखने, पढ़ने के काम में।
पर इस छोटी सी लगभग भूल जाने वाली घटना के बारे में अचानक से उठे सवाल ने मन को झकझोर कर रख दिया कि हम भी तो अपने को भिखारी बना अपने ईष्ट से, उसके मन्दिर में कुछ न कुछ मांगने जब कभी चल पड़ते हैं और हो सकता है वो भी हमारी इसी डोरबेल बजाकर परेशान करने वाली आदत से खीझ कर मुँह पर तो नहीं दिल से कह देता हो, कि क्या रोज़ रोज़ ये लोगों ने दुखी कर रखा है।

जबकि मेरे दोस्त ने इतनी डिटेल में ऐसा कुछ नहीं लिखा, पर उनका फेसबुक मित्र सर्कल जो पांच छे साल से उनके साथ हैं यही कुछ समझ जाते होंगे, जो मैंने लिखा, और मैंने तो मसाला अलग से भरकर आप को परोस दिया।
मुझे स्वंय नहीं कहना कि इस बात से मैंने क्या सबक लिया और आपने क्या पाया। बस युहीं अपनी बात दूसरों को कह सुन कर इस जीवन की जो घड़ियां बची हैं गुरु के और परमात्मा के इन्ही गुणों की विचार को आगे बढ़ाते हुए और जितना हो सके अपने बाकि के जीवन में उस दिशा निर्देश में चलते समय गुज़र जाए, यही बहुत है।

#Seriously

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