Saturday, 4 August 2012

रुआल छंद || त्व प्रसाद || जापु साहिब||७९-८६|

तेरी हस्ती सबसे पहले की है । तेरी हस्ती का कोई किनारा नहीं, तूँ जूनों मे नहीं पैदा होता, तूँ सर्व व्यापक व बेअंत हैं ।
तूँ सब का मान हैं, तीनों ही लोकों के जीवों के लिए पूज्य योग्य है । भेद के बिना व आरम्भ से दाता है ।
सब को पालने वाला, सब को मारने वाला, व सब का काल है ।
जहां कहीं रह रहा है, तुँ बेपरवाह व आंनदमयी रूप वाला हैं ।७९।
जिस का कोई ठिकाना नहीं, तथा ना ही कोई रुप, रंग, या रेखा ही है ।
...
तूँ रचना का मूल व्यापक रुप हैं, खुल-दिल हस्ती है, जन्म में नहीं आता व संम्पूर्ण हैं ।
तेरा कोई विशेष देश या भेष नहीं है, ना कोई रुप, ना रेख,व ना ही कोई मोह है ।
जहाँ कहीँ हर तरफ, हर किनारे, प्रेम रुप हो के,फैला हुआ हैं ।८०।


प्रभू में विशेषता....
प्रमातमा का कोई विशेष नाम नहीं, वो वासना रहित है, उसका कोई विशेष ठहरने का स्थान भी नहीं दिख रहा है ।
जो सब का गर्व है, सबको मानता है, तथा सभी उसको पूजते हैं ।
वो एक स्वरुप होते हुए भी अनेक दर्शन देता है, कियोंकि उस ने अनेक रुप धारण किये हुए हैं ।
खेल-खेल के जब खेलने से अखेल होता है तो फिर अंत को एक आप ही आप रह जाता है ।
जिस का भेद देवते नहीं जानते तथा ना ही वेद, या धार्मिक किताबें जानते हैं ।
वो उस का रुप या रंग, जात व कुल तथा शोभा बही नहीं जानते ।
जिसका ना कोई पिता है और ना ही माँ, जो जन्म-मरण में नहीं आता ।
जिसका तेज़ चक्र चारों दिशाओं में चल रहा है, तथा तीनों  लोक उसे मानते हैं ।८१-८२।
वो चोदहं लोकों में, जहाँ उस का जाप होता है ।
वो आदि (आरम्भ से ) पूज्य योग्य, ऐसी हस्ती है जिसका अपना आदि नहीं है और जिसने सर्ष्टी की रचना कायम की है ।
वो महान रुप व पवित्र हस्ती है तथा हर तरह पुर्ण रुप मे्ं सब में व्यापक व बेअंत है । .
जिसने अपने प्रकाश से सारे जगत की रचना की है तथा बनाना व तोड़ने वाला है ।
वो मोत से रहित है, शक्ति वाला है, काल रहित, व्यापक व विशेष देश वाला नहीं है ।८३।

प्रभु मौत रहित है, सम्पूर्ण सामर्थ्य वाला है, काल रहित है, सब में व्यापक है, तथा उसका कोई देश नहीं है ।
प्रभु धर्म का घर है, भ्रमों से ऊपर है; न वह पाँच त त्वों से बना है, न वह दिखता है तथा न ही उसका कोई परिधान (वेश) है ।
(वह प्रभु ऐसा है) जिस को शरीर का मोह नहीं है, न ही उसका कोई रंग है, न कोई जाति तथा कुल, तथा न कोई एक नाम है ।
वह प्रभु ( अहंकारियों का ) अहंकार तोड़ने वाला है । दुष्टों का नाश करने वाला है । मुक्ति देने वाला है तथा कामना पूरी करने वाला है ।८४/
प्रभु अपने आप से प्रगट हुआ है, गहन है (भाव उसका कोई भेद नहीं जान सकता) वह प्रशंसा से परे है (भाव, कोई उसको स्तुति करने से समर्थ नहीं है ) वह एक आप ही है, सब में व्यापक है तथा माया के बन्धनों से परे है ।
प्रभु अहंकारियों का अहंकार खंडित करने वाला है । आदि काल से विद्ममान है, तथा अजन्मा है ।
शरीर रहित तथा अविनाशी है । उसमें जीवों के विभिन्न अस्तित्व नहीं है (कि्योंकि वास्तव में) वह स्वंय ही एक ही है, सब जीवों में स्वंय विद्ममान है तथा अनन्त है ।
प्रभु सब कुछ करने मे स्मरंथ है, सब को नष्ट करने वाला है, तथा सब का पअलन करने वाला भी है ।८५/
प्रभु सब जीवों तक पहुंचने वाला है, सबको मारने वाला है, तथा उसका वेश सबसे निराला है ।

वह प्रभु ऐसा है किै सारे शास्त्र उसका न रुप जानते हैं, न रंग और न ही निशान । वह ऐसा है जिसके सम्बन्ध में वेद तथा पुराण कहते हैं कि वह सदा सर्वोच्च है, तथा उसके समान कोई नहीं है ।

करोड़ों स्मृतियों, पुराणों तथा शास्त्रों द्वारा भी उसका वास्तविक स्वरुप समझ में नहीं आ सकता ।८६।

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