Saturday, 4 August 2012

छपै छंद।। त्व प्रसादि।। जापु साहिब।१|

वाहिगुरू , जिसका कोई चिन्ह या  निशान, वर्ण, जाति व कुल  नहीं है /
कोई नहीं कह सकता कि उसका रूप, रंग, चित्र व पहरावा कैसा है /
जो अटल स्वरूप वाला, अपने आप से प्रकाश-मय व अत्यधिक बल वाला कहा जाता है /
जो करोड़ों इन्द्रों का इंद्र व राजाओं का राजा गिना जाता है /
जो तीन लोकों का राजा है; देवते, मनुष्य, दैंत, तथा वनों के कण-कण भी उसे बेअंत-बेअंत कहते हैं /
हे वाहिगुरू जी ! तेरे सारे नामों का कौन वर्णन करे ?
समझदार (बुद्धिजीवी) लोग तेरे कर्म नाम से तेरा वर्णन करते हैं / १/

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