Tuesday, 14 August 2012

डुबकी [कविता]

आत्मा को गहरायी तक
सोचने के लिये
डुबकी लगाने की जरूरत है।

एक डुबकी जो डुब जाये
मेरे प्राण से
बाकि सारा जहान
बेखबर रह जाये।

...
उसी एक डुबकी में
पा जाऊँ अंतराल की छुअन
जो हिल जाये मेरी आत्मा
जो सच सोच सके
व कलमबंद ख्याल
किसी के रूबरु आ जाये।

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