Saturday, 4 August 2012

चाचरी छंद || जापु साहिब ||२९-४३|

तुम्हारी कोई सीमा  या किनारा नहीं, तुम्हारा कोई दुश्मन नहीं है /
तुम्हे किसी सहारे की जरूरत नहीं, तुम किसी जन्म में नहीं आते हो /
तुम पहुँच से दूर, जन्म से रहित, तत्वों से रहित, छुहे जाने  से दूर   हो /
तुम्हें देखा नहीं जा सकता, चिंता से रहित, कर्मों से रहित, भर्म से रहित हो /
तुम ना किसी से जीते जाने, निडर, न हिलाए जाने वाले और न पकड़ में आने वाले  हो /
तुम कभी मान नहीं करते, हर एक वस्तु का भण्डार, अनेक होते हुए भी फिर से 'एक' हो //४३//

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