Wednesday, 15 August 2012

दर्द [कविता]

दर्द ही दर्द
पीड़ा ही पीड़ा
इस दिल पर और आईने पर
दरारें ही दरारें
जो जीने नहीं देतीं /
जिंदा होने का अहसास
वो भी तो खत्म हो रहा है
मेरे साँसों की डोरी
जो तेरे साथ जुड़ी है
वो भी दर्दों की भरी/

ये दर्द किसके साथ बाँटू
किससे पुछूं
इन दर्दों का मरहम
कौन से वैध के पास है ?
वो भी तो कहीं
किसी दर्द में
खो तो नहीं गया ?
 

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