कि अछिज देसै।।कि अभिज भेसै।।.....
हे प्रभु ! न तेरा देश नष्ट होने वाला है, न तेरा वेश नष्ट होने वाला है। कोई धार्मिक रितियाँ तुझे वश नहीं कर सकती तथा कोई वहम-भ्रम तुम्हें डावांडोल नहीं कर सकता।१०३।
हे प्रभु ! तेरा देश अविनाशी है, तू सूर्य के तेज़ को भी सुखाने (नष्ट करने) वाला है। तेरा अस्तित्व ऐसा है कि जिस को माया का मोह प्रभावित नहीं कर सकताः तू ऐश्वर्य का स्रोत है।१०४।
कि राजं प्रभा हैं........!
हे प्रभु ! राजाओं में भी तेरा ही तेज़ दिखाई दे रहा है। तू धर्म को सुन्दर बनाने वाला है, तेरा स्वरुप चिन्ता से रहित है। तू सब जीवों का आभुषण है।१०५।
हे प्रभू ! तू जगत का कर्ता है। तू योद्धाओं का योद्धा है। तेरा स्वरुप सौन्दर्य का मूल है। तू उपमा रहित, आत्मज्ञानी है।१०६।
हे प्रभु ! न तेरा देश नष्ट होने वाला है, न तेरा वेश नष्ट होने वाला है। कोई धार्मिक रितियाँ तुझे वश नहीं कर सकती तथा कोई वहम-भ्रम तुम्हें डावांडोल नहीं कर सकता।१०३।
हे प्रभु ! तेरा देश अविनाशी है, तू सूर्य के तेज़ को भी सुखाने (नष्ट करने) वाला है। तेरा अस्तित्व ऐसा है कि जिस को माया का मोह प्रभावित नहीं कर सकताः तू ऐश्वर्य का स्रोत है।१०४।
कि राजं प्रभा हैं........!
हे प्रभु ! राजाओं में भी तेरा ही तेज़ दिखाई दे रहा है। तू धर्म को सुन्दर बनाने वाला है, तेरा स्वरुप चिन्ता से रहित है। तू सब जीवों का आभुषण है।१०५।
हे प्रभू ! तू जगत का कर्ता है। तू योद्धाओं का योद्धा है। तेरा स्वरुप सौन्दर्य का मूल है। तू उपमा रहित, आत्मज्ञानी है।१०६।
कि जगतं क्रिती हैं.......!
हे प्रभु ! तू आदि से ही है। तुझसे बढ़कर अन्य कोई देवता नहीं है, भाव, तू सर्वोच्च है। तू अपने जैसा आप ही है, इसी लिये कोई तेरा भेद नहीं पा सकता। तेरी कोई तस्वीर नहीं बन सकती है। तू एक अपने आप के ही अधीन है।१०७।
कि रोज़ी रज़ाकै......!
हे प्रभु ! तू सब जीवों को जीविका देने वाला है। सब पर रहम [दया] करने वाला है, तथा सब को दु:खों से मुक्ति देने वाला है। तू पवित्र स्वरुप है, तुझ में कोई कलंक नहीं है,तथा तू पूर्णरुप से गुप्त है।१०८।
कि अफवुल गुनाह हैं.......!
हे प्रभु ! तू जीवों के पापों को क्षमा [माफ़] करने वाला है। तू राजाओं का राजा है। तू सब कारणो का कर्ता है, भाव, जीविका आदि के कारण, सब प्रकार के कारण [परिस्थतियां] पैदा करने वाला तू आप ही है, तथा सब को जीविका देने वाला है।१०९।
कि राज़क रहीम हैं.........!
हे प्रभु ! तू सब को जीविका देने वाला है, सब पर दया करने वाला है। तू कृपा करने वाला कृपालु है। तू सारि शक्तियों का स्वामी है, तथा सब जीवों का संहार करने वाला है।११०।
कि सरबत्र मानियै..........!
हे प्रभु ! प्रत्येक स्थान पर तुम्हारी ही पूजा हो रही है। प्रत्येक स्थान पर सब जीवों को तू ही दान दे रहा है। तू प्रत्येक स्थान पर सब भवनों में मौजूद है।११२|
कि सरबत्र दीनै...........!
हे प्रभु ! सब जगह तू ही सब जीवों को दान दे रहा है, सर्वत्र तू ही मौजूद है, प्रत्येक स्थान पर तेरा तेज़ प्रताप है। प्रत्येक स्थान पर तेरा ही प्रकाश है।११३।
कि सरबत्र देसै..........!
हे प्रभु ! प्रत्येक देश के प्रत्येक स्थान पर तू उपस्थित है, प्रत्येक स्थान पर सब की रक्षा करने वाला भी तू ही है।११४।
कि सरबत्र हंता.........!
हे प्रभू ! प्रत्येक स्थान पर सब जीवों को तू ही मारने वाला है, तू प्रत्येक स्थान पर पहूँचने वाला है। प्रत्येक स्थान पर प्रत्येक वेशभूषा में तू ही है, तथा प्रत्येक स्थान पर तू सब जीवों की देखभाल करता है।११५।
कि सरबत्र काजै........!
हे प्रभु ! सर्वत्र तेरे ही किये कार्य दिखायी देते हैं । प्रत्येक स्थान पर तू अपना प्रकाश कर रहा है। प्रत्येक स्थान पर तू ही सब को मारने वाला है, प्रत्येक स्थान पर तू ही सब को पालने वाला है।११६।कि सर्बत्र त्राणै........!
हे प्रभू !
प्रत्येक स्थन पर तेरी ताकत कार्य कर रही है/प्रत्येक स्थान पर तुम्हारे ही दिये हुये प्राण बस रहे हैं/प्रत्येक स्थान प्रत्येक देश में तू ही मौजूद है/ प्रत्येक स्थान पर प्रत्येक वेशभूषा में तू ही तू है/११७/
कि सरबत्र मानियै..........!
हे प्रभू !
प्रत्येक स्थान पर सब जीव तेरी ही पूजा कर रहे हैं/प्रत्येक स्थान पर तू ही सदा प्रधान है/
कि रोज़ी रज़ाकै......!
हे प्रभु ! तू सब जीवों को जीविका देने वाला है। सब पर रहम [दया] करने वाला है, तथा सब को दु:खों से मुक्ति देने वाला है। तू पवित्र स्वरुप है, तुझ में कोई कलंक नहीं है,तथा तू पूर्णरुप से गुप्त है।१०८।
कि अफवुल गुनाह हैं.......!
हे प्रभु ! तू जीवों के पापों को क्षमा [माफ़] करने वाला है। तू राजाओं का राजा है। तू सब कारणो का कर्ता है, भाव, जीविका आदि के कारण, सब प्रकार के कारण [परिस्थतियां] पैदा करने वाला तू आप ही है, तथा सब को जीविका देने वाला है।१०९।
कि राज़क रहीम हैं.........!
हे प्रभु ! तू सब को जीविका देने वाला है, सब पर दया करने वाला है। तू कृपा करने वाला कृपालु है। तू सारि शक्तियों का स्वामी है, तथा सब जीवों का संहार करने वाला है।११०।
कि सरबत्र मानियै..........!
हे प्रभु ! प्रत्येक स्थान पर तुम्हारी ही पूजा हो रही है। प्रत्येक स्थान पर सब जीवों को तू ही दान दे रहा है। तू प्रत्येक स्थान पर सब भवनों में मौजूद है।११२|
कि सरबत्र दीनै...........!
हे प्रभु ! सब जगह तू ही सब जीवों को दान दे रहा है, सर्वत्र तू ही मौजूद है, प्रत्येक स्थान पर तेरा तेज़ प्रताप है। प्रत्येक स्थान पर तेरा ही प्रकाश है।११३।
कि सरबत्र देसै..........!
हे प्रभु ! प्रत्येक देश के प्रत्येक स्थान पर तू उपस्थित है, प्रत्येक स्थान पर सब की रक्षा करने वाला भी तू ही है।११४।
कि सरबत्र हंता.........!
हे प्रभू ! प्रत्येक स्थान पर सब जीवों को तू ही मारने वाला है, तू प्रत्येक स्थान पर पहूँचने वाला है। प्रत्येक स्थान पर प्रत्येक वेशभूषा में तू ही है, तथा प्रत्येक स्थान पर तू सब जीवों की देखभाल करता है।११५।
कि सरबत्र काजै........!
हे प्रभु ! सर्वत्र तेरे ही किये कार्य दिखायी देते हैं । प्रत्येक स्थान पर तू अपना प्रकाश कर रहा है। प्रत्येक स्थान पर तू ही सब को मारने वाला है, प्रत्येक स्थान पर तू ही सब को पालने वाला है।११६।कि सर्बत्र त्राणै........!
हे प्रभू !
प्रत्येक स्थन पर तेरी ताकत कार्य कर रही है/प्रत्येक स्थान पर तुम्हारे ही दिये हुये प्राण बस रहे हैं/प्रत्येक स्थान प्रत्येक देश में तू ही मौजूद है/ प्रत्येक स्थान पर प्रत्येक वेशभूषा में तू ही तू है/११७/
कि सरबत्र मानियै..........!
हे प्रभू !
प्रत्येक स्थान पर सब जीव तेरी ही पूजा कर रहे हैं/प्रत्येक स्थान पर तू ही सदा प्रधान है/
प्रत्येक स्थान पर तेरा ही जाप हो रहा है/प्रत्येक स्थान पर तू ही तू स्थित है/११८/
जापु साहिब
जापु साहिब
[जारी......!
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