हे प्रभु ! तेरा अस्तित्व ऐसा है, जो इन जगत रचना वाले पाँच तत्वों से अलग है । तेरा प्रकाश कभी नष्ट न होने वाला है ।
हे प्रभु ! तू कैसा है तथा कितना महान है, यह तथ्य अवर्णनीय है । तू अनन्त गुणों का स्वामी है । तू उदार है ।९१।
मुनि गण प्रणाम......!
हे प्रभु ! असंख्य तपस्वी तेरे ही सम्मुख झुकते हैं, तुझे न कोई डर है, न कोई कामना ।
हे प्रभु ! तेरा तेज़ प्रताप किसी के द्वारा भी सहा नहीं जा सकता; (कोई सह नहीं सकता) तू जितना महान है तथा जैसा है, उस अवस्था को कोई कम नहीं कर सकता ।९२।
आलिस्य करम........!
हे प्रभु ! तुझे अपने कार्यों में विशेष उद्मम करने की आवश्यकता नहीं है, फिर भी तेरा कर्मशील होना एक आदर्श है, भाव, दुनिया के लिए मिसाल है, उदाहरण है। तू सृष्टी की सारी सजावटों, सारे गहनों से भरपूर है, पर कोई तेरी तरफ़ दृष्टी लगा कर देख सके, ऐसी किसी की हिम्मत नहीं। विश्वसनीय तौर पर तुम्हें कोई ताड़ना नहीं कर सकता ।९३।
( रचना: क्षी गुरू गोबिंद सिंह जी।)
No comments:
Post a Comment