Tuesday, 14 August 2012

ग्रहण [कविता]


दिन का सूरज
सूरज की लाली
लाली का ग्रहण
ग़रीब व गरीबी ऊपर
किसी सेठ का काली परछाईं।

परछाईयां तो रोज़ आती है
पर कोई कोई परछाईं
यमदूत बन के
किसी ग़रीब जिंदगी का
ग्रहण बन जाता है
और वो अमिट ग्रहण
उस जिंदगी को
भस्म कर देता है। 

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