Saturday, 4 August 2012

भुजंग प्रयात छंद || जापु साहिब ||४४-६३|

उसको नमस्कार है /
जिसको सब मानते हैं, जो सब के लिए खजाना है, देवतों के देवता, भेष से रहित, उसको नमस्कार है /
काल को भी मार देने वाले, सब की पालना करने वाले, हर एक तक पहुँचने वाले, हर स्थान बसने वाले, उसको नमस्कार है /
अंगों से रहित, स्वामी रहित, किसी साथी के बिना, सुरजों के सूरज, मान्य योग्य से मान्य, उसको नमस्कार है /
चांदों के चाँद, सुरजों के सूरज, गीतों में महान गीत, बहादुरों से बहादुर, उसको नमस्कार है /
नर्तकों में नर्तक, आलापों में अलिप्त रूप, हाथों में हाथ, तथा साजों में साज़, उसको नमस्कार है //४४-४८//
नमस्कार वंदना
हे देह रहित, व नाम रहित, परन्तु सभी सरूपों वाले, प्रलह लाने वाले व नाश करने वाले तथा सारी संप्रदा के रूप,
हे कलंक रहित,पवित्र हस्ती वाले, राजाओं के राजे, उतम सरूप वाले ! तुझे नमस्कार है /
हे योगियों के बड़े सिद्ध-योग-राज, राजाओं के बड़े महाराजे, तुझे नमस्कार है /
हे शस्त्रधारी, अशस्त्र मानने वाले, पूर्ण ज्ञाता, जगत के माता (पालनहार), तुझे नमस्कार है //
हे भेष रहित, भर्म रहित, ना भोगने वाले, न भोगे जाने वाले, योगिओं के योगी, महान जगत वाले,
हे सदा सुख देने वाले, दुख रूप काम करने वाले, अच्छे व बुरे के मालिक, व धर्म रूप को नमस्कार है // ४९-५४ //
नमस्कार है;
रोग को नाश करने वाले, प्रेम सरूप, शाहों के शाह  , राजाओं  के राजा, को नमस्कार है;
दान देने वाले, सम्मान योग्य, रोगों को दूर करने वाले, शुद्द सरूप को नमस्कार है;
मन्त्रों के बड़े मन्त्र, जन्त्रों के बड़े जंत्र, पूजनीय योग्यों में महान पूज्य, तंत्रों में बड़े तंत्र, को नमस्कार है;
हमेशा कायम, चेतन व आनंद सरूप, सबको नाश करने वाले, उपमा से दूर, रूप से रहित, सब में एक सार बसने वाले  को नमस्कार है;
हमेशा सिद्धि  देने वाला, बुद्धि  देने वाला, तरक्की देने वाले, नीच-ऊँच के बीच, व सारे पापों का  नाश करने वाले को ,नमस्कार है;
सबसे ऊँचा मालिक, गुप्त रह कर सब की पालना करने वाला, हमेशां हर स्थान  सिद्धियां देने वाला, दाता, व दयालु को नमस्कार है;
वे तोड़ा नहीं जा सकता, भागने वाला नहीं, उसका कोई विशेष स्थान नहीं, उसकी कोई वासना नहीं, सब को जितने वाला, जो सब स्थान पर है को नमस्कार है; (५५-६१)

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