Saturday, 4 August 2012

भुजंग प्रयात छंद ।।जापु साहिब।।६४-७३।

अगाधे अबाधे.........
हे अथाह . नाम रहित, आनन्द सरूप , तूँ सब का मान रूप है, व सारे पदार्थों का खजाना है; तुझे मेरा नमस्कार है;
जिह उपर कोई मालिक नहीं, जो सबसे ऊँचा है, जो अजित है, जो अटूट है, तुझे नमस्कार है;
नमस्कार है काल रहित को, उसको जिसका कोई पालक नहीं, सबी देशों वाले को, सारे भेषों वाले को;
राजाओं के राजे, रचना रचने वाले को, पात्शाहों के पातशाह, चाँद को चांदनी देने वाले को नमस्कार है;
गीतों के महा गीत, प्यार से ऊँचे प्यार को, क्रोध में महा क्रोध रूप, शोकिओं के महा शोकिन, तुझे नमस्कार है;
नमस्कार है;
सभी  रोग रूप, सभी  भोग रूप, सभी को जीतने वाले, सभी के लिए रूप को नमस्कार है;
सभी को जानने वाले, बड़े बलवान, सारे मन्त्रों के ज्ञाता, सारे जन्त्रों के ज्ञाता को नमस्कार है;
सभी को देखने वाले, सभी को आकर्षित करने वाले, सभी रंगों में मोजूद, तीनों ही काल (भुतकाल, वर्तमान, भविष्य) को नाश कर सकने  वाले को नमस्कार है;
जीवों के जीवन रूप, श्रृष्टि के कारणों के मूल कारण, ना खिजने वाले, ना पसीजने वाले व सभी के ऊपर प्रसन्न होने वाले को नमस्कार है;
तूँ कर्पाल रूप, बुरे काम को नाश करने वाला, हमेशा ही सारे समय (काल) में रिद्धि-सिद्धियों का निवास स्थान हैं //


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