Saturday, 4 August 2012

चाचरी छंद।। त्व प्रसादि।। जापु साहिब।९४-९५।

गुबिंदे।।मुकंदे।।.........!

हे प्रभु ! तू पृथ्वी के जीवों के दिल को जानने वाला है। तू जीवों को मुक्ति देने वाला है। तू खुले दिल वाला है। तू अनन्त है।९४।

हे प्रभु ! तू सब को नष्ट कर देने वाला भी है, तथा पैदा करने वाला भी है। तेरा कोई एक नाम नहीं है, तथा कोई कामना तुझे प्रभावित कर नहीं सकती।९५।

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