Monday, 3 December 2012

आदि सचु, जुगादि सचु ......(1) जपु जी साहिब |


सोचै सोचि न होवई जे सोची लख वार।।
चुपै चुप न होवई जे लाइ रहा लिवतार।।

अर्थ: यदि मैं लाख बार भी स्नान आदि से शरीर की पवित्रता रखूँ तो भी इस तरह पवित्रता रखने से मन की पवित्रता नहीं रह सकती । यदि मैं शरीर की एक-तार समाधि लगाये रखूँ, तो भी इस तरह चुप रहकर के मन में शांति नहीं हो सकती।


1 comment:


  1. http://www.vridhamma.org/UploadNewsletter/PDF/hi2017-03.pdf

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