Friday, 29 July 2016

सिख की परिभाषा

मेरे विचार में हम सिखों को इस गलतफहमी में कतई नहीं रहना चाहिए कि हिन्दू या मुस्लिम धर्म की तरह सिख धर्म में भी जन्म से ही सिख पैदा होते हैं। सिख धर्म को पृथक यानि अलग पंथ इसीलिये कहा गया है।

जरुरी नहीं कि सिख धर्म में पैदा होने वाले ही सिख होते हैं या होने चाइए। तथा ना ही जरुरी है कि केवल सिख ही गुरु ग्रन्थ साहिब का अध्यन कर सकते हैं।

सिख धर्म में हिन्दू की रस्म 'जनेहु-मुंडन या मुस्लिम की रस्म 'सुन्नत' थोपी नहीं जाती ।

सिख धर्म धर्म ना होकर एक 'पढाई' है। जो जितनी क्लास पढ़ गया उतना बड़ा ज्ञानी। जो इस पढ़ाई को समझ गया वो बर्मज्ञानि । जिस किसी ने इस पढाई को पढ़, समझ कर अपना लिया वो स्वयं ही गुरु का रूप ।

इतिहास गवाह कि यह पदवी जबर्दस्ती ना किसी विशेष पुत्र, ना किसी जति-बिरादरी तथा ना किसी परिवार-वाद को मिली है । यह रुतबा केवल उनकी अपनी कमाई है, ना कि कोई खैरात ।

कोई भी मनुष्य चाहे वो सिख धर्म अपनाना चाहे वो अपनी जाति-बिरादरी, खानदान, गरीबी-अमीरी तथा समाजिक पदवी को अलग रख कर गुरवाणी पर विश्वास रखता हुआ 'सिख' बन सकता है।

इस धर्म में रूल, मर्यादा, नियम इत्यादि थोपे नहीं जाते, बल्कि अपनाने की रस्म अदायगी होती है।

1 comment:

  1. बहुत खूब कहा आपने| नानकजी कि वाणी एक PhD की शिक्षा है| मैं एक हिन्दु पैदा होने पर भी,एक सिख (student) हूं|लंबा सफ़र है और उसके हुकुम पे चलना है| धन्यवाद।

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