Friendship with An Ignorent*
Never Work Out Right.
As he Knows, he Acts;
Behold & See that it is so.
One Thing Can be Absorbed*
Into another Thing,
But, Duality* Keeps them Apart.
No One Can Issue Commands,
To The Lord & Master,
Offer instead Humble Prayers.
Practicing Falsehood Only,
Falsehood is Obtained.
O Nanak, Through The Lord & Master, Praise one Blossoms forth.
कोई भी मनुष्य परख कर देख लो । अज्ञानी से मित्रता कभी किनारे (सिरे) नहीं पहुंचती, क्योंकि उस इंसान की रवैया ऐसा होता है जैसी उसकी समझ होती है, कि किसी को समझ नहीं आता,
उस मुर्ख मन के कहने पर कोई लाभ नहीं होता उसका मन विकारों से भरा हुआ है और अपनी समझ में मग्न रहता है
किसी एक वस्तु में दूसरी वस्तु तब ही डाली जा सकती है, जब उसमें से पहली वस्तु निकाल ली जाए।
इसीलिए प्रभु के साथ जुड़ने के लिए जरूरी है कि पहले अपना स्वभाव बदला जाए।
जैसे मालिक के आदेश के आगे किसी की नहीं चलती, ठीक वैसे ही प्रभु के हुक्म की तामील करने के सिवा हमारा कोई चारा नहीं है।
उस प्रभु परमेश्वर के आगे तो निम्रता से ही अपनी बात मनवाई जा सकती है।
हे, नानक, धोखा करने से धोखा ही मिलता है।
जितना समय मनुष्य दुनिया के धंधे में लगा है, उतना समय टेंशन में है।
at least, प्रभु की सिफत सलाह से उत्साह (चढ़दी कला ) तो बनी ही रहती है।
Pauhdi 22 Asa di War, SGGS 474.
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