#सिखों_के_दो_निशान (#ध्वज़_व_पगड़ीं )
पिछले एक लेख "निशान साहिब" में इस ध्वज़ के सबन्ध में विचार हुए थे कि सारी दुनिया के गुरद्वारा साहिब के बाहर लगाए जाने, इसके नाम और इसकी ऊंचाई से जो गहरे अर्थ तथा उद्देश्य की बात हुई थी कि इसका मतलब यह है कि दूर दूर से दिखने वाले इस निशान यानी चिन्ह को देख कर कोई भी राहगीर, चाहे वो किसी भी जाति, धर्म, देश, वर्ग का हो, वह बिना संकोच ठहरने, रहने, नहाने, खाने, बिस्तर, दवा, की जरूरत महसूस होते ही इस ओर चला आए, और इन सुविधाओं का लाभ ले सकता है। यही इन गुरद्वारों की प्राथमिकताएं है।
आज हम पगड़ीं धारी सिख की बात करते हैं कि जब कभी जिस किसी को किसी भी प्रकार की आपातकालीन (emergency) अवस्था में इस निशान वाले सिख की मदद ले सकता है। इस पगड़ीं के निशान चिन्ह वाले सिख की भी सबसे पहले फ़र्ज़ बनता है कि जिस किसी गरीब, कमज़ोर, जरूरतमंद को आप से मदद की जरूरत आंन पड़े, तन, मन, हो सके तो धन से भी उसकी सहायता करे । यही गुरु के सिख का सच्चा और स्वच्छ धर्म है।
सिर्फ और सिर्फ ध्यान अपने पांच ककारों का रखना है कि जो वो मदद का कार्य करने जा रहा है, उसके लिए केसों से ढके मस्तिष्क की बुद्धि, विवेक सबंधी निर्णय, कंघा, सूचक सफाई, कड़ा, सूचक वहम-भृमों यानी कर्मकांड, छुआछूत से बे फ़िक्र और सबसे जरूरी कच्छहरे यानी आचरण का कंटोल रखते हुए तथा किर्पान यानि कमज़ोर और गरीब की रक्षा की पहरेदार को अपनी आँखों से ओझल न होने देने का संकल्प निभाना है।
रही बात पगड़ीं की इसका भावार्थ तो हिंदुस्तान में हर किसी की इज्जत से लेते है। जो कि अपनी भी है, दूसरे की भी है न उतरने देनी है न किसी की इज्जत उतारनी है।
जब कभी कहीं भी गुर सिखों की ये दो निशानियां देखें तो अपने आपको बेसहारा और असुरक्षित मत समझना । धन्यवाद।
##Seriously
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