शब्द (शब्द सुरति संयोग)(1A)
#शब्द 2. #सुरत 3. #अनहद_शब्द 4. #शब्द_सुरति संयोग।
#शब्द
शब्द, #अपरंपार (पारब्रहम) की परावाणी है। यह निराकार के #अशब्द स्वर की #अनहद (निरन्तर) धुनि है, #अदृष्ट तथा अपर्म-पारी #परम्_प्रकाश का ज्योति उजाला है। अकाल पुरुष की मौजूदगी के सुन्न शब्द की अनुरागी गूंज है तथा #निरगुण पारब्रहम की सूचक है।
गुरुमत अनुसार गुरु व पारब्रहम एक ही रूप हैं । एक रूप होने से गुरु , अपर्मपार की अशब्द बोली को समझना, बुझना,तथा अपने ह्रदय में प्रत्यक्ष कर लेते हैं । गुरु, ह्रदय में रूपवान हुआ शब्द का लिखित रुप ही #नाम_निरंजन है। गुरु द्वारा उच्चारण का प्रत्यक्ष रूप ही गुरु अपने शिष्यों को कहता है। यह ह्रदय-ह्रदय में बंटता नाम निरंजन ही परमात्मा को मिलाने वाला है।
नाम निरंजन प्रकाश-मय है तथा गुरु के द्वारा प्रशंसिक रूप हो शब्द धारण कर अपने अनुभव प्रकाश का जलवा दिखा देता है । वाणी का यह रूप गुरु ह्रदय में भाव, प्रकाश-वान हो माध्यम का रूप धारती है तथा अंत में #बैखरी वेश में गुरवाणी नाम से प्रकट होती है।
संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि परमात्मा का अशब्द, गुरु की वाणी बन लिखित या उच्चारण हो शब्द ब्रहम तथा नाम निरंजन में गुरु शब्द हो कर प्रकट होता है। दूसरे शब्दों में गुरु पारब्रहम के अशब्द वाणी की शक्ल अख्तियार कर लेते हैं। बोलने वाला परमात्मा है, #गुरु_परमात्मा_की_भाषा_का_अनुवादक_है। इसलिए गुरु की शिक्षा (गुरमत) में गुरवाणी को #धुर_की-बाणी कहा जाता है । cont..
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