अनहद, अनाहद, अनहत, व अनाहत एक ही शब्द के विभन्न रूप तथा एक ही अर्थ वाले हैं।
"हठ-योग दो अभ्यासों का निश्चय है कि जब प्राण अनाहद चक्र में ब्रहम-ग्रन्थि को छेदते हैं, तब यह शब्द पैदा होता है । इसलिए अनाहद-नाद संज्ञा है। जब अनाहद शब्द का रस आता है, तब मन के तरंग शांत हो जाते हैं ।
गुरमत में गुरु शब्द अथवा नाम के भावार्थ के चिंतन में अपनी विर्ति लाने से अनेक प्रकार के अनुभव उतपन्न होते हैं, यह अनाहत शब्द है। तथा इसी को सुरति शब्द लिखा है, अर्थात सुरति (विर्ती) को शब्द से जोड़ना है, जिस से मन की एकाग्रता होती है।" (भाई काहन सिंह,गुरमत मारतंड)
"पहली बात तो यह बताना जरूरी है कि अनाहद शब्द का अर्थ योग में यह नहीं जो शब्द बिना हत अर्थात दो वस्तुओं की टक्कर सोये पड़े होता हो। अनाहद शब्द इसीलिये नाम रखा गया है, क्योंकि यह शब्द तभी पैदा होता है जब प्राण अनाहद चक्र में ही ब्रहम ग्रन्थि को छेदते हैं।" डा.जोध सिंह, गुरमत निर्णय)
"अनहद' पद को गुरवाणी में केवल 'शब्द' के साथ ही नहीं इस्तेमाल किया गया, यह पद वाणी के साथ भी आया है.....जब निरंकार के साथ मिलन होता है तो अनहद वाणी की धुन भी उपजती है ।इसीलिये 'अनहद' का अर्थ है नाम रहित या अटूट। गुरु इस ज्ञान व् गुप्ती वाणी को अपने उपदेश द्वारा संसार में प्रचार करते हैं । इसीलिये गुरवाणी को भी अनहद शब्द कहा जाता है।" (उही)
"अदृष्ट को देखने के लिये सुरति संयोग की आवश्यकता है ।...." "सुरति वाले के लिये निर्गुण राम कुदरत के विस्माद रूप में झलकता है। सुरति किस तरह से निर्गुण को स्वगुण में बदल देती है? इसका संकेत गुरवाणी में है:-
"निरगुण राम_गुणह वसि होइ।।..SGGS222
वो पहले गुणों के द्वारा नाम को धारण करती है:-
"गुण ते नाम_परापति होइ।।" SGGS361
फिर बदलता चक्र है, इससे चार वाणी 'यग' (परा) 'पश्यन्ति' 'मध्मा' 'बैखरी" वापसी चक्कर लगाती हैं।
इस तरह सर्गुण नाम, जो बैखरी नाम है, वो अंदर की ओर धसता, भाव में पलटता हुआ प्रकाश में उलटता 'अज्जपा' हो जाता है। सुरति दो भाषी (द्विभाषी) होने से निर्गुण व् सर्गुण में तथा सर्गुण को निर्गुण में पलट देती है। सर्गुण तथा निर्गुण मिलीजुली एकता की समझ का नाम सुरति है। सुरति बाहर की तरफ तो गुण देख कर विस्माद में जाती है, अंदर की ओर वो चीज़ निर्गुण हो कर ह्रदय की निर-आकार मेहरबान में अनहद की गूंज गूंजती है:-
"हउ बिखम भई देखि गुणा,
'अनहद' शब्द अगाजा राम।।"...SGGS765
......उनके लिए बाहर की कुदरत तथा अंदर की फ़ितरत में एकता हो जाती है। उनकी प्यास बुझ जाती है, आँखों से बराबर विस्माद देखते हैं, सुरति के साथ वो अंदर अनहद सुनते हैं:-
"तपति बुझी सीतल आघाने....SGGS1218
सुरति वालों के लिये कुदरत में 'वो साहिब' दिख जाता है, जो छिपा हुआ इसका 'क़ादर' है। अंदर से हर ह्रदय में उसके शब्द रूपी गूंज गूंजती है:-
"जिनि जग सिरजि समाईआ..SGGS581
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