यदि सच पूछो तो जो भी व्यक्ति , जिसका कहीं न कहीं समाज से लिंक है, चाहे वो आस्तिक हो या नास्तिक पढ़ा-लिखा हो या अनपढ़, बेशक किसी भी जाति-धर्म के सम्पर्क में हो ,सब को जानकारी है कि पाप क्या है या पूण्य । कौन-सा काम अपराध की गिनती में आता है या कौन-सा नहीं।
मनुष्य के मन को सब मालुम है कि उसे क्या करना चाहिए, कौन-सा नहीं। फिर भी उससे कुछ ऐसा हो जाता है, जो नहीं होना चाहिए।
इसका कारण , धर्म-कर्म में माने जाने वाले पाँच विकारों में से किसी एक का हावी हो जाना है। वो बाद अलग है कि उन विकारों में से जो कोई विकार उस कार्य के करने से पहले आता है या बाद में। एक कारण और भी है जो ये सब कुछ समझते बुझते और उसके नतीजे में मिलने वाली कानूनन या सामाजिक या आत्मिक सज़ा की भी परवाह न करना या स्कुल-कॉलेज , सामाजिक-धार्मिक पुस्तकों की पढ़ाई भी आड़े नहीं आती, वो है मानसिक असुंतलन, जिसमे इस बात की कोई सुध-बुद्ध नहीं रहती कि वो जो करने जा रहा है वो ठीक है या गलत ।
अब मैं बात करता हूँ उन विकारों की ,जो मनुष्य को उसे करने या होने का दबाव बनाते हैं।
पहला विकार जो लगभग सभी धर्मों में प्राथमिकता और बहुत बड़े पाप को जिंदगी में दाग़ दार बनाता है, वो विकार है #पाप
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