Thursday, 9 February 2017

नाम क्या है?

#सिध_गोष्ट में गुरु नानक जी ने '#नाम' को तत्वों का #शिरोमणि_तत्व माना है:-
#नाम_तत_सभ_ही_सिरि_जापै।।
गुरु अर्जन देव जी इसको #रूपरेख_रहित  #पर्म_तत्व बताते हैं:-
#परम्_तंत_महि_रेख_न_रूप।।
यह आधार माला के उस सूतर जैसे है, जिसके सहारे माला के सारे मोती एक लड़ी में पिरोए जाते हैं ।
सुखमनी साहिब में सोहलवीं पौड़ी की  "#नाम_के_धारे" वाली रचना में अनेक #खंड_ब्रह्मंड हैं। यह सारे खंड ब्रह्मंड सूत्रधार कर्ता ने माला के मोतियों जैसे नाम रूपि सूत्र में पिरोए हुए हैं , जब वो चाहे इस सूत्र को खींच कर खंड-ब्रह्मंड को #ध्वस्त कर सकता है।
#आपे_सूत_आपे_बहु_मणीआ...
#SGGS605

उपरोक्त विचार से यह बात स्पष्ट है कि 'नाम' केवल #पूर्ण_संज्ञा के अर्थों में नहीं लिया जा सकता, बल्कि इससे मुराद एक #सर्व_व्यापक_शक्ति  है, जो #परिपूर्ण होकर कण-कण में विद्यामान हो रही है।
पंचम पातशाह गुरु अर्जन देव जी ने, जहां ऊपर लिखी #सुखमनी_साहिब की सोहलवीं पोहड़ी के द्वारा किसी #उस "नाम" की ओर  इशारा करते हैं, जो #जप_ का विषय है। जिसको सुनने से जीव का #उद्धार होता है तथा जिस के जपने से #सहज_अवस्था यानी
".......नाम कै संगि उधरे सुनि स्रवन।।
करि किरपा जिस_आपनै नामि लाए।।16।

नाम जपने वाला बैखरी भी है व पूर्ण रूप में #निशब्द भी।  'नाम' का #जाप बैखरी से आरंभ होता है तथा पूर्णरूप में ह्रदय नाम का विकास होकर #सर्व_व्यापक नाम में निवास करता है।
हम आगे जाकर #नाम_के_विकास तक की सारी अवस्था का विवरण सहित विचार करेंगे ।

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