Friday, 24 February 2017

डेरावाद और गुरविंदर सिंह की भमिका

आए दिन नए नए विवाद पंजाब की शान्ति भंग करए रहते हैं। हम अखबारों में इनके बारे में पढ़ते हैं। ये विवाद आमतौर पर विभन्न धात्मिक सम्प्रदायों से संबंधित डेरों के कारण होते हैं।
1978 में अमृतसर शहर में  जो खुनी साका निरंकारियों के कारण हुआ, उसकी याद अभी भी ताज़ा है। निरंकारियों के विरुद्ध सिखों की शिकायत पुरानी थी।, वो गुरु नानक देव जी की वाणी का दुरूपयोग करते थे, अपने प्रमुख की तुलना गुरु साहिब से करते थे, सिख जब एतराज करने लगे तो उन्हें गोलियों से भुंन दिया गया, सारा पंजाब तड़प उठा। इस घटना से पंजाब में त्रासदी की शुरुआत हुई।

जरनैल सिंह भिंडरवाले का उदय इसी लहर से हुआ। इस झगड़े में निरंकारी बाबा गुरबचन सिंह की हत्या हो गई। यह डेरों के झगड़ों की शुरुआत थी।

पंजाब में कई सरकारें आईं । हर सरकार अमन शान्ति कानून की रक्षा के लिये होती है। लेकिन कुकरमुतों की तरह उभर रहे डेरों  की ओर ध्यान न दे सकीं । वोटों के लालच नें डेरावाद के भयवाह  परिणामों को नज़रंदाज़ कर दिया। अनेक डेरे पैदा हुए और पंजाब के लोग इनके पुजारी हो गए।

सिरसा के डेरा सच्चा सौदा गत कुछ समय से सबसे आधी विवादग्रस्त बना हुआ है। भारत में धर्म प्रचार की आज़ादी है लेकिन किसी की निंदा करने की नहीं।

धर्मांतरण की आमतौर पर मनाही है। धर्मांतरण के कारण ही बहुत से दंगे हुए हैं । अनेक प्रांतो पर इस पर कानूनी पाबन्दी है। सच्चा प्रमुख के विरुद्ध सिख भावनाओं को भड़कानें का आरोप है। एक बार पंजाब के ज़िला मुक्तसर में उसने जो स्वांग रचा उसके कारण सिखों के गुस्से का शिकार बनने से वह सरकार के हस्तक्षेप के कारण बच गया था। उस समय सभी धर्मों के प्रतिनिधि सिरसा गये ताकि वह क्षमा याचना करें लेकिन वह किसी न किसी बहाने से टालता रहा। हाल ही में सिरसा में इसी कारण कर्फ्यू लगाना पड़ा । वोट राजनीति में यह डेरा सबसे आगे है।
कई अनेक डेरे भी विवाद की जड़ हैं, जो सिखों की भावना भड़कानें में लगे हुये हैं। सिख भी धर्य की सीमा से आगे निकल जाते हैं। कई बार तो भावनाओं को कई आगे तक ले जाते हैं।

मैंने रमेश विनायक, संपादक, हिंदुस्तान टाइम्स,चंडीगढ़ का एक आलेख पढ़ा है। उन्होंने राध स्वामी डेरा, व्यास के प्रमुख बाबा गुरिंदर सिंह की सराहना की है। मैं स्वंय भी बाबा गुरिंदर सिंह के बारे में लिख चुका हूं ।

इस डेरे ने कभी किसी विवाद को शह नहीं दी, सदा शांति का संदेश दिया है। कुछ समय पूर्व डेरे से सटे गाँव "वड़ैच" में एक गुरद्वारा था, जो डेरे की विकास योजना में आता था। गाँव पंचायत से परामर्श करके यह गुरद्वारा डेरे को दिया गया। गुरद्वारे को गिरा कर वहां से सड़क बनाई गई। यह ऐतिहासिक गुरुद्वारा नहीं था।

कई सिखों ने ऐतराज किया। मामला अकाल तख्त के पास पहुंचा। उन्होंने विचार विमर्श करके कोई कार्यवाही न करने का आदेश जारी किया, लेकिन सिख संगठनों ने इस पर नाराजगी व्यक्त की और मोर्चा लगाने की घोषणा कर दी। लेकिन बाबा गुरिंदर सिंह शाबाशी के हक़दार हैं कि उन्होंने तत्काल इस विवाद को हल करने दायित्व स्वंय संभाल लिया । सर्वप्रथम बाबा गुरिंदर सिंह जी दरबार साहिब नमस्तक होने गये। कई लोग हैरान रह गए । मैंने बाबा जी की इस यात्रा के बारे में अखबारों में लिखा। बाबा जी स्वंय दादूवाल से मिलने पहुंचे । ऐसा करके उन्होंने कमाल कर दिया।

दादूवाल जी की अपनी एक राय है, आमतौर पर उनके बारे में समाचार छपते रहते हैं। वह बाबा जी की सलाह मान गए । फिर भाई मोहकम सिंह जी से संपर्क किया गया। उन्होंने भी आग में घी डालने का काम नहीं किया, बल्कि बुझाने का प्रयास किया। पूरी संघर्ष कमेटी से बाबाजी के संपर्क का परिणाम सार्थक हुआ  और हम किसी नए टकराव से बच गये। अब नया गुरद्वारा के निर्माण करने की व्यवस्था स्वंय डेरा व्यास द्वारा की जाएगी।

बाबा गुरिंदर सिंह का प्रयास सभी डेरा प्रमुखों के लिये सबक है । क्योंकि ये सभी डेरों के प्रमुख अपने अहंकार से मुक्त नही हैं। जो भी डेरा प्रमुख ख़ुद को सही अर्थों में धार्मिक मानते हैं उन्हें भगवान की शरण लेनी चाहिये, स्वंय भगवान् नहीं बनना चाहिये।

गुरु नानक देव जी स्वंय हर जगह गए और संवाद रचाया । ख़ुद को एक साधारण मनुष्य कहा, जबकि वह एक विश्व-ज्योति थे। बाबा गुरिंदर सिंह जी अपने प्रत्येक प्रवचन में गुरवाणी के प्रमाण देते हैं। मैं उनकी इस भूमिका की प्रशंसा करते हुए कहता हूँ कि सभी सिख डेरों  के प्रमुख भी वाद-विवाद कम करने का काम करें।

Tarlochan Singh

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