पंच शब्द
पंच शब्द कई प्रकार के गिने जाते है। जिनमें कुछ का जिक्र इस प्रकार है :--
1. पंच वाजे (साज़) :-
तत, विर्त, घन, नाद, व शखिर।
"तत बिन घन सुखरस सभ बाजैं।।
सुन मन रागं गुनिमन लाजैं।। (असराज)
तत= तँती साजों में से निकली आवाज़ या राग धुनि। (रबाब सितार आदि)
विर्त= चमड़े के साथ चिपकाए साज़ में से निकली आवाज़ (ढोलक, मिरदंग आदि)
घन= धातु के बने साज़ (छैने, चिमटे,आदि)
नाद= घड़े आदि के मुंह और हाथ के थाप के ज़ोर से निकली आवाज़
शंखिर= फूंक से बजाने वाले साज़ । (बांसुरी, शहनाई, हारमोनियम,आदि से निकली आवाज़ या धुनि)
2. सिंग, डफ, शंख, भेरी तथा जयघण्टा आदि साज़, जो पुराणों के अनुसार राजाओं के समक्ष बजाने का विधान था।
3. पुराण के अनुसार (सुंदर विलास) वेद ध्वनि, बंदीजन ध्वनि, जय ध्वनि, शंख ध्वनि, आदि।
गुरमत अनुसार ध्वनि का एक अलंकारिक इस्तेमाल हैं। जिसका भावार्थ यह है कि :--
(A) जो आंनद योगी , पांच तरह के आंतरिक शब्दों को सुनकर लेते थे, उस से अधिक आंनद निर-आकार प्रभु के मिलन से मिलता है।
(B) जो आंनद पांच तरह के साजों के बजने से उतप्न होता है, उससे भी अधिक आनंद पर्मात्मा के मिलन से होता है।
No comments:
Post a Comment