नाम कैसे प्राप्त होता है?
नाम को यदि संज्ञा मॉन लेते हैं, तो यह कहना कि नाम केवल गुरु से मिलता है, निर-अर्थक हो जाता है।
संज्ञा मात्र 'नाम' से कोई अंजान नहीं।
निरंकार के संज्ञक नाम, तो लोग कई प्रकार से अंनत रूपों से नित्य प्रति लेते हैं।
वास्तव में 'नाम' का श्रेष्ट तथा सर्व-व्यापक रूप, सच्चे गुरु की कृपा द्वारा, सच्चे गुरु की ओर से ही लिखा जा सकता है। यथा;
"बिन सतिगुर हरिनाम_न लभई
लख कोटी करम कमाओ।।
"गुरु की जरूरत" नाम का पहले लिखे एक सरलेख में इस विषय का विस्तार सहित वर्णन है। फिलहाल, यहां इस पोस्ट में इतना ही कहना उचित है कि "नाम" गुरु द्वारा ही प्राप्त होता है"।
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