Wednesday, 15 February 2017

सुरति, (शब्द सुरति संयोग) (1 B)

सुरति (शब्द सुरति संयोग) (1)
सुरति, सभी जीवों-जंतुओं में एक स्वभाविक शक्ति है, जो प्रारम्भ अवस्था में अचेतन है तथा अपनी अज्ञात सूझ द्वारा ही सभी काम संवारती है। सूझ , तर्क, तथा दलील इसमें नहीं होती। स्वभाविक ही सारे कार्य पूर्ण होते हैं । इस का निवास ह्रदय की उस गुफा के निकट है जहां नाम-निरंजन रहता है।

मनुष्य के अन्तःकरण में इसके साथ-साथ मन तथा बुद्धि भी है। मन, समूह-इच्छा , कामना व लालसा का संकल्प व विकल्प की गठरी तथा दुःख-दर्द , ख़ुशी-गमी, को महसूस करता है।

इससे ऊपर का तत्व है बुद्धि। बुद्धि में विवेक , विचार व ज्ञान भी है। यह भले-बुरे  को वितर्क करके निश्चय और निर्णय करने की समर्था रखती है, पर इसकी पहुंच भी सिमित है। इसके निर्णय पांच ज्ञान इंद्रियों के उपलब्ध कराए साक्ष्य पर आधारित हैं । इससे ऊपर इसकी सोच उड़ जाती है । बुद्धि, क्योंकि पांच तत्व की उपज है, इसलिए इसकी तर्क-वितर्क भी इन्हीं तत्वों से पैदा हुए ज्ञान तक ही संभव है। जो तत्व इन पांचों तत्वों के ऊपर हैं, वो इसकी पँहुच-सीमा से बाहर है। आत्मा और पपरमात्मा के विशाल संबध में इसका प्रवेश नहीं है।  पराभौतिक मामले इस की पकड़ में नहीं आते । अदृष्ट, अगोचर, व अपरम्पर होंद के ज्ञान में इसका कोई ज़ोर नहीं। यहीं पहुंच है सुरति की। सुरति है पांच ज्ञान इंद्रियों के ऊपर छठी  सूझ (sense) ।  इसकी सूझ-कला  प्रोभोतिक भी है व भौतिक भी। इसलिए यह है एक मूल-धारणा ।

आमतौर से परमात्मा के सर्व-गुण व अवगुण, दो रूप गिने जाते हैं। सर्वगुण रूप तो मन-वाणी का विषय है, पर निर्गुण अगम व अगोचर है। सुरति पहले तो सुन्न शब्द धारण करके अप्रंम्पार में ठहर जाती है, फिर सुन्न को अपने में विलय कर निर्गुण की अशब्द वाणी को सर्वगुण की बैखरी वाणी में बदल देती है। सुरति मानो, द्विभाषी है,जो सर्वगुण ओर निर्गुण  की दो भाषाओं को जानती-बुझती है। तथा अपनी आलौकिक सूझ से निर्गुण के अनहद-नाद को सर्वगुण के राग-सरगम में बदल देती है तथा आखिरकार अपनी बदली ताकत से सरगम को निर्गुण में बदल देती है। पर यह सब कुछ होता है, शब्द व सुरति के संयोग से ।।  Next अनहद शब्द।

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