Sunday, 26 February 2017

मानस ख़ोर

मुग़ल राज़ में ,जो मलेछ लोग  मनुष्य तक का मांस खा (माणस खाणे) जाते थे, और ब्राह्मण व क्षेत्रीय समाज के लोगों को मुंशी बना खुद्द जुल्म और चाक़ू मारने (छुरी वगाइन) का काम करते थे। उन्हीं से गरीब और कमज़ोर मनुष्य पर जुल्म व् अत्याचार करवाते थे।
यही मलेछ लोग इतना सब करके भी बिना नागा अपने धर्म अनुसार आराधना (नवाजे) करते थे।
क्षेत्रीय लोग जो इन मुगलों के गुलाम थे, वे अपना धार्मिक चिन्ह व वेशभूषा पहने हुए ही अपने हाकमों के कहने पर करते थे।
यही क्षेत्रीय जब अपने हाकमों के घर शंख (नाद) बजा कर उनका मनोरंजन भी करते थे।
ब्राह्मण समाज जो भी इनका गुलाम था,वो भी इस शंखनाद का आंनद लेते थे। जिसके बदले उन्हें कई प्रकार के स्वादिष्ट (साद)  भोजन भी खाने को मिलता था।  जो कि इन्हीं मलेछों के कहने पर किसी न किसी पर जुल्म करके मिलता था। यही झूठी (कूड़) इनकी कमाई थी, यही इनका व्यपार था।
गुरु नानक जी अपनी वाणी में बताते हैं कि अब तक सभी धर्म और शर्म (सरम) की बैठक उठ चुकी है, भाव इन्होंने सारी शर्म-हया का ख्याल करना बंद कर दिया है। सब जगह अब झूठ ही प्रधान हो रहा है।

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