Tuesday, 21 February 2017

"प्रम्पद" का गुरमत द्वारा स्पष्टीकरण

स्वामी शंकराचार्य पारब्रहम को "निर्वाण शून्य"* कहता है, (*गभीरधीर निर्वाण शून्यम)

पर इसका समकाली ब्रिजयानी शून्यवादी बुध परंपरा का प्रसिद्ध सिध सरहपाद जो शून्यता को ही अपनी योग भावना को लक्ष्य मानता है। प्रम्पद मानता है "शब्द ब्रहम" को  "शून्य निरंजन"* का नाम देता है। वास्तव में 'शब्द ब्रहम', 'शून्य निरंजन' तथा "नाम निरंजन"  पच्यन्ति वाणी के के प्रकाश के ही प्रतीक हैं । (*शून्यनरिंजन परमपद--स्वप्नौपमा स्वभाव्)

गुरमत अनुसार गुरु तथा पारब्रहम एक रूप हैं।*
"गुर परमेसर एको जाण।।
जो तिस_भावै सो परवाण_।।
एक रूप होने के कारण गुरु अपरम्पार की अशब्द भाषा को समझना-बुझना तथा अपने ह्रदय में प्रत्यक्ष रूप कर लेता है। गुरु ह्रदय में रूपवान हुए शब्द को यह पच्यन्ति रूप ही "नाम निरंजन" है। गुरु  उसको अपनी आँखों से देखता है*

"तह भइआ प्रगास_मिटिआ अंधिआरा,
जिऊ सूरज रैण किराखी।।"

अपने शिष्य (सिख) को दिखा देता है।*
*"नाम_निरंजन नालि है,किउ पाईऐ भाई।।
नाम निरंजन वरतदा रविआ सभ ठाई।।
गुर पुरे ते पाईऐ हिरदै दे दिखाई।।

"जि पइआ।।

नाम निरंजन' ही पारब्रहम का "मेलन हार'*
"जीआ अंदरि जिउ सबद_है
जित_ सह मेलावा होइ।।..SGGS1250 मिलाने वाला है।

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