सर्व-निवासी 'नाम' हर ह्रदय , कण-कण, रोम-रोम में भरपूर है, मौजूद है।
#रविआ_सभ_ठाई" है।
#अंजन_माहि_निरंजन" होते हुए भी 'सबस दा वरतारा" है ।
पर इसकी प्राप्ति #पूरे गुरु' से होती है।
तथा गुरु इस का #टिकाणा" ह्रदय में ही दिखा देता है । "नाम निरंजन अलख है..SGGS1242.
कृति के अंनत फैलाव में 'नाम' ही #गुपतो_वरतदा' है ।
यदि गुरु के हुक्म अनुसार चल कर "गुरमुख" बन जाएं, तो गुरु अपनी बक्शीश से ह्रदय निवासी 'नाम' द्वारा 'नामी' मिला देता है।
"इस काइया अंदरि बहुत_पसारा..SGGS112.
गुरु फ़रमाते हैं कि "जिस गुरमुख ने सतगुरु की संगत में रहकर अपनी अंतर-आत्मा से परमात्मा को देख लिया है, उसको प्रभु का नाम मीठा करके लगता है, उसको अब सभी "भूतकि पदारथ" एक प्रभु में से ही निकलते दिखाई देते प्रतीत होते हैं।"
उसके मन में ही उस प्रभु के नाम का निवास प्रत्यक्ष हो जाता है ।
यह 'नाम' मानो ! नौ ख़ज़ानों के तुल्य है, तथा अमृत जीवन बक्शने वाला है।
अब, उसके ख्याल मन के भीतर ही लीन हो जाते हैं तथा 'नाम' में ही "अफूर सुरति" जुडी रहती है, तथा #विसमाद रंग चड़ जाता है। "एक-रंग राग", जिसका वर्णन #अकहि है, आनन्दमयी तथा #विसमाद अवस्था" बना देता है:-
"संत संगि अंतरि प्रभू डीठा..#SGGS293
इन प्रमाणों से यह बात निखर में आती है कि 'नाम' का निवास मनुष्य के अन्तःकरण में है । मनुष्य के अन्तःकरण में एक गुफा है, जिसको दसवां द्वार कहा जाता है। वास्तविकता में यह दसम_द्वार ही जहां अंनत रूप परम्-पिता का #नवनिधि यानी खज़ाना है अर्थात निरंकार की ज्योति का वासी है :-
हरि जिओ गुफा अंदरि रखि कै वाजा पवण_वजाइआ...SGGS922
ऊपर बताया गया है कि #सतगुर_नाम_निरंजन को ह्रदय में से ही देखा जा सकता है। इन सभी प्रमाणों से पता लगता है कि जहां #अनेक_रूप_नाओ_नवनिधि" है, वो दसवां द्वार है:-
गुर कै सबदि एहु गुफा विचारे।।
नाम निरंजन अंतरि वसै मुरारे।। SGGS128
अब, इस बात में कोई शक नहीं रहता कि यह गुफा, जिसके अंदर #नाम_निरंजन बसता है, वो ह्रदय ही है तथा इस ह्रदय-रूपी गुफा का ही दूसरा नाम #दसम_दुआर है, जहां पूजने का ढंग सतगुरु इस तरह फ़रमाते हैं:-
सतिगुरि मिलिऐ धावत_थंमिआ..SGGS
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