Sunday, 12 February 2017

प्रभु की प्राप्ति कैसे हो?

पिछले पन्नों में यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि:-
1. प्रभु का नाम, हमारे अंदर ही बसता है।
2. हमारे अंदर ह्रदय रूपी एक गुफा है, जिसमें परम्-आत्मा (परमात्मा) की ज्योति तथा अनंत रूप निर-आकार (निरंकार) नाम का खजाना है। यह ह्रदय रूपी नाम मंदिर ही दसवां (दसम) द्वार है।
अब प्रश्न उठता है कि गुरु की शिक्षा (गुरमत) इस द्वार (टिकाणा) पर पहुंचने का कौन-सा तरीका अपनाती है।
एक #हठ_योगी प्राणायाम द्वारा प्राणी की इंद्रियों से अलग करके , विधियों तथा सिमृतियों आदि द्वारा बाहर-अंदर उठती लहरों को रोकने के लिये, #नाद_लय का ढंग अपनाता है । हठ-योग प्रदिपका अनुसार यह आवाज़ सुनने के लिये , उसको निम्न लिखित ढंग अपनाने पड़ते हैं।
1. #मुक्तासन लगाना।
2. #सांभवीं_मुंद्रा धारण करनी।
3. #सुखमना को प्राणायाम द्वारा मल-रहित एकाग्र-चित होना ।
4. नाक, कान, मुहं, आँखें बंद करके आवाज़ें सुननी।
इतना कुछ करने के बाद आवाज़ें दाहिने कान के नज़्दीक साफ-साफ़ सुनेंगी। योगी चार अवस्थाओं में से निकलकर #निशब्द  निरकारी #अभूतक_अवस्था में पूजता है। इसको #उन्मनी_अवस्था कहा जाता है। यह #अशब्द_अवस्था है। #आरंभ_अवस्था में #नाद उतपन्न हुआ था तथा #निष्पत्ति तक , नाद मन का स्वाद बना रहा। नाद में ही #चित_एकाग्र हुआ तथा नाद में ही विलीन हो गया। यह मन की नाद में विलीन हुई अवस्था विष्णु का #परम्_पद है। इससे अगली अवस्था पारब्रह्म का #परम्_पद है । यह नाद या शब्द से ऊँची मंजिल है। इस अशब्द-अवस्था में मन की हस्ती (होंद) नहीं रहती। नाद समाप्त होने पर मन भी मर जाता है। इस #मन_मुक्त #निशब्द_अवस्था  का नाम ही उन्मनी-अवस्था है।

हठ-योग प्रदिपका में #नाद_उपासना का जिक्र करते हुए गोरखनाथ कहते हैं:-
"जब तक #अनाहद_शब्द सुना जाता है, तब तक आकाश का संकल्प रहता है। #शब्द_रहित को पारब्रह्म व् परमात्मा कहते हैं। जो कुछ नाद के रूप में सुना जाता है, वो शक्ति है तत्व का जहां अंत है, वो निराकार है, वही परमेश्वर है।"

सो उपरोक्त विचार से हम इस निर्णय पर पँहुचे हैं कि #हठ योगी, शब्द को केवल #साधन_मात्र समझता है। उन्मनी-अवस्था में उसको शब्द का सहारा छोड़ना पड़ता है। शब्द, इस अवस्था का गौण है। योगियों के इस ढंग को #शब्दि_सुरति" संयोग भी कहते हैं।
Cont...Next;  शब्द-सुरति संयोग (1)

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