Thursday, 25 May 2017

चेतन अवस्था

चेतन अवस्था             
                हमारा शरीर, इसके विभन्न अंग तथा हमारी सोच, ये सभी मस्तिष्क के द्वारा नियंत्रित किये जाते हैं । इसी नियंत्रण को चेतन अवस्था भी कहा गया है । मनुष्य का मस्तिष्क अन्य संसारिक जीवों से अधिक विकसित है क्योंकि यह सोचने,समझने व विचारने की क्षमता भी रखता है । हमारी इसी चेतना, सोचने व विचारने की क्षमता को ही 'मन' कहा जाता है । सोचने की क्षमता के कारण ही हमारा मन सारा दिन विचारों में खोया रहता है । हमारा मन पलक झपकते ही कहीं का कहीं पहुंच जाता है। हमारा मन अधिकतर भविष्य की चिंताओं और भूतकाल की यादों में खोया रहता है । इसका स्वभाव है कि यह किसी एक स्थान (टिकाव) पर नहीं रहता ।
यह जहां हमारा शरीर है, वहाँ ना होकर अपनी अलग दुनिया में जीता है ।
               हमारा मन अधिकतर काम, क्रोध, लोभ, मोह तथा अहंकार आदि विकारों से प्रभावित होकर अवगुणों में फंस जाता है । इसलिये हमें अच्छी संगत, अच्छे ज्ञान की बातें अपने मस्तिष्क के जरिये भरनी चाइए जो हमें प्रभु के गुणों के व्ख्यान करने वाली जगहों और ज्ञान वर्धक पुस्तकों से प्राप्त होंगी ।  मन को विकारों से बचाने के लिये घर छोड़ कर कहीं जाने की, गुफाओं, पहाड़ों में रहने की, भिक्षुक बन कर मांग कर खाने की कोई जरूरत नहीं हैं । क्योकि हम जिस गुरु की विचारधारा को मानते हैं वो इन सभी कार्यों की इजाजत नहीं देती ।
                   इस मन की चेतन अवस्था में हमने ये बात अपने संस्कारों जैसे घर गृहस्थी का पालन करते हुए, जो संगत तथा गुरु की ज्ञान की बातें अच्छी पुस्तकों से जाननी है, को अपना कर विकारों के लिये कोई जगह ही नहीं छोड़नी है कि वो इस मन पर काबु कर सकें । तभी हमारा मन भटकना छोड़ एक प्रभु के साथ जुड़ सकेगा ।
                कबीर जी हमें समझाते है कि
         " कहि कबीर मनु मानिआ ।।
            मनु मानिआ तउ हरि जानिआ ।।" 
                  अपनी चेतन अवस्था में मन पर नियंत्रण के लिये उसे खाली समय में या रोजमर्रा के कार्य करते हुए हमें गुरबाणी की शिक्षाओं की यह बात समझानी होगी कि  जो प्रभु अपने अंदर बसा है, हमारे किये कर्मों को देख सुन रहा है, के डर से अपना जीवन ईमानदारी, अच्छी नियत से जीना चाहिये ताकि हर कोई हम पर विशवास कर सके ।
                      फिर हम स्वंय देखेंगे कि हमारे अंदर जो विकार थे वो हवा में उड़न छु हो गए हैं और गुरबाणी से पैदा हुए गुणों के कारण हम सभी से प्रेम करने लग गए हैं । जिससे हमारा मन में सदैव खुशियाँ बनी रहेंगी ।
Amrender Singh Gurmeet Singh Gambhir 

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