Saturday, 20 May 2017

शारीरिक मौत का सच

#शारीरक_मौत_का_सच 
प्रश्न- "क्या मनुष्य की शारीरक मौत होने से सभी खेल समाप्त हो जाता है ?
यदि हाँ, तो कैसे ?
यदि नहीं, तो क्यों नहीं ?
उत्तर- मौत के बारे में विचार करने से पहले, जन्म के बारे विचार करना जरूरी है  । जन्म क्या है _।
सामान्य तौर पर लगता है कि माता पिता के मिलन से कुछ भौतिक, रसायनिक किर्या द्वारा जीव, मनुष्य का जन्म हो गया । पर ऐसा नहीं है । भौतिक किर्या द्वारा तो भौतिक शरीर ही बनता है। पर मनुष्य केवल शरीर ही नहीं है । भौतिक शरीर के अतिरिक्त गैर शारीरक भी इस के साथ बहुत कुछ जुड़ा हुआ है। बल्कि यह कहना अधिक उचित होगा कि , भौतिक संसार में पैदा होने के साधन की वजय से, जीव को आकार रहित (गैर शारीरक) यह भौतिक शरीर, मिला है । जीव, मनुष्य के साथ कई और भी गैर शरीरक पहलू जुड़े हुईं हैं, जैसे -- जीव, आत्मा या परमात्मा==यह जीव मनुष्य का स्वंय का आपा है । जीव उस प्रभु का ही अंश है । तथा उसका अंश होने से इस के सभी गुण भी प्रभु के अपने ही हैं ।
मनुष्य वर्तमान समय में जिस हालात में है, यह प्रभु का अंश होने के बावजूद भी प्रभु नहीं है । प्रभु अथाह सागर के सामान है तथा जीव एक छोटी सी पानी की बूँद के बराबर है । प्रभु सूरज तथा जीव एक छोटी सी किरण है । मनुष्य को प्रभु से अलग करने वाली सब से पहली चीज़  है उसका "अहंकार", दूसरी चीज है "मन" । मन, जिस रूप में प्रभु से आया है, यदि उस ज्योति स्वरूप हालत में ही रहता है तो इस की प्रभु से कोई दूरी नहीं ।  पर सांसारिक पदार्थों के लोभ, लालच में फंस क्र यह प्रभु तथा अपने में बारीक से दुविधा के पर्दे को मजबूत दीवार बना लेता है ।
मनुष्य के साथ एक और गैर शारीरक पहलू है - जीवन ज्योति या या जीवन सत्ता । जीवन के बिना शरीर जड़ वस्तु है । मिट्टी का ढेर है ।
इस के अतिरिक्त, और गैर शारीरक है, "चेतन सत्ता" जो कि मनुष्य के अंदर है बुद्धि या सूझ है ।
चेतन सत्ता के बिना मनुष्य पेड़ पोधे,या कीड़े मकोड़े, की तरह है। जिनमें जीवन तो है, पर मनुष्य की तरह बुद्धि या सूझ बुझ नहीं है ।
मन, मन का मनुष्य जीवन में एक अहम रोल है । इसके द्वारा मनुष्य , संकल्प, विकल्प, किसी कार्य करने का निर्णय लेना या इरादा त्यागना, इज्जत, मान, सन्मान, शोक इत्यादि महसूस करता है । शरीर जो दुख सुख महसूस करता है । यह दुख सुख हैं  तो शरीर पर ही, मन के जरिये मन के ही कारण । मन में स्वंय की कोई सूझ बुझ नहीं । मन में संस्कारों का समूह है । यह शरीरक ज्ञान इन्द्रियों तथा कर्म इन्द्रियों के द्वारा अपना काम करता है । मस्तिष्क तथा शारीरक कर्म के जरिये इसको देख सूंघ कर जानकारी हासिल होती है या अपने आप से ही जो विचार उत्प्न होते हैं , मन उस संबंधी अपनी इच्छा, संकल्प, विकल्प आदि अनुसार अपना हुक्म दिमाग को पंहुचा देता है । तथा  दिमाग आगे शारीरक इन्द्रियों को  मन के कहे मुताबिक़  काम करने के लिये आदेश देता है । तथा शारीरक कर्म इन्द्रियां अपनी समर्था अनुसार उस काम में लग जाते हैं ।
मौत -- जीवन सफर समाप्त होने पर दिमाग सहित भौतिक शरीर नष्ट हो जाता है या कर दिया जाता है । शरीर समाप्त होने से इस जन्म में बिताये दुख सुख तथा इस जन्म की सभी यादें  शरीर के साथ खत्म हो जाती हैं । जीवन ज्योत, चेतन सत्ता, प्रभु में समा जाती है । अच्छे बुरे किये कर्म के संस्कारों का प्रभाव जो कि साथ साथ मन में लिखा जाता है, मन पर लिखे उन संस्कारों के प्रभाव  सहित प्रभु की हजूरी में जा पहुँचता है ।
इस जीवन में गुरु ग्रन्थ साहिब में लिखी शिक्षा वाला जीवन बिताने वाला मनुष्य जीवन सफर समाप्त होने पर प्रभु के आदेश से उसी में समा जाता है । तथा फिर से जन्म मरण के चक्कर में पड़ने से छुटकारा पा जाता है । तथा अपने मन की करने वाला मनुष्य जीवन सफर समाप्त होने पर प्रभु के आदेश में अनेक प्रकार के जन्मों में भटकता तथा दुख सुख भोगता है ।

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