मनुष्य बैठता, सोता तीन हाथ ज़मीन घेरता है। लगभग इतना ही मन (वज़न) के मुर्दा शरीर को खाक-ए-सुपूर्द करने के लिए भी जमीन इतनी ही लगती है।
तीन साढ़े तीन का क्षेत्रफल के पैमाने वाला शरीर , अन्न-पानी की पूर्ति से गतिशील होता है। जब मौत का फरिश्ता अचानक दरवाज़ा खड़खाता है, अपने प्यारे भाई, जिनके लिए कभी झगड़े,ठगियां करता था,आज वही उसे बांधने कोतेयार खड़े हैं । कहते हैं कि बहन की डोली की तरह मृतक देह को कंधा पहले भाई देते है--
"साढे त्रै मण देहुरी, चलै पाणी अंनि।।
आइउ बंदा दुनी विचि,वत आसूणी बंनि।।
मलकल मउत जा आवसी सभि दरवाजे भं नि।।
तिंना पिआरिआ भाईआं अगै दिता बंनि।।
वेखहु बंदा चलिआ चहु जाणिआ दै कंनि ।।
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