Friday, 5 May 2017

कुदरत_का_करिश्मा

कुदरत_का_करिश्मा

श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी में गुरवाणी के कहे अनुसार परमात्मा का कोई भौतिक अस्तित्व  नहीं है । इसलिये उसको इन आँखों से देखा नहीं जा सकता । जिस तरह हवा को देखा नहीं जा सकता पर उस की मौजूदगी का अहसास किया जा सकता है, या उस बारे जाना जा सकता है । उसी तरह परमात्मा को इन आँखों से देखा नहीं जा सकता । उसकी बनाई कुदरत से उसकी शिनाख्त की जा सकती है, तथा उसके अस्तित्व बारे जाना जा सकता है । "नानक सच दातारु सिनाखतु कुदरती ।।' अर्थात उसकी पहचान उसकी रचना कुदरत में से होती है । जैसे कोई बहुत सुंदर कृति देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसको बनाने वाला कोई उच्च कोटि का कारीगर होगा । यदि इस सोच के चश्में लगा कर हम जब कुदरत देखेंगे तो कदरत भी किसी उच्च कोटि के कारीगर की कीर्त नज़र आने लग जाएगी । हमें उसको देखने के लिये उन आँखों की जरूरत है जिन आँखों से वह दिखता है ।

परमात्मा के अस्तित्व का सब से बड़ा सबूत यही है कि विज्ञान कहता है, अपने आप से अर्थात 'कुछ भी नहीं' कुछ अस्तित्व में नहीं आ सकता । पर इतना विशाल तथा अंतहीन ब्राह्मण्ड हम प्रत्यक्ष स्वयं देख सकते हैं । बात स्पष्ट है कि ब्रह्माण्ड किसी प्राभौतिक तरीके से अस्तित्व में आया है। जिसने प्राभौतिक से भौतिक ब्रह्माण्ड में लाया, उस कारीगर  को परमात्मा कहा जाता है ।

इस बात का कोई इनकार नहीं कर सकता कि दुनिया के किसी भी कुदरती नियम में स्वयं में कोई समझ नहीं है । दुनिया में हमें सब कुछ कुदरत के बंधे नियमों के अधीन होता नज़र आ रहा है । लगता है कि इस में परमात्मा जैसी किसी हस्ती का क्या काम। परमात्मा के अस्तित्व को मानना कोरा अंध विशवास नज़र आता है । पर जरा उन आँखों से कुदरत को देखने की कोशिश करो , जिनके बारे में गुरु ग्रन्थ साहिब में कहा गया है :-–-
"नानक से अखड़ीया बीअनि,
जिनी डिसन्दो मा पिरी ।।"

दस दिन पानी कहीं खड़ा रहे तो इसमें से बदबू आनी शुरू हो जाती है पर हज़ारों, लाखों वर्षों से हम ताज़ा पानी पीते चले आ रहे हैं । टनों के हिसाब से समुन्द्र से पानी भाप बन के ऊपर उड़ जाता है । तथा बारिश के रूप में  कोसों दूर कई स्थानों पर पहुंच जाता है । पहाड़ों पर बर्फ के रूप एक्त्र हो कर* *नदियों, दरियाओं के द्वारा हमारे तक पहुंच जाता है । कल्पना करो,कहीं पहाड़ के ऊँचे स्थान पर एक बाल्टी पानी की पहुंचानी हो तो कितनी मुश्किल हो जाती है।  पर कुदरत (कर्ते की कृति) टनों के हिसाब से पानी आसानी से पहाड़ों तक पहुंचा देता है । यह सारा कार्य होता तो कुदरत के बंधे हुए नियमों के अधीन ही है । पर यदि उन  आँखों से देखें गे तो कुदरती नियमों के पीछे भी करते की हमारे लिये उपलब्ध की हुई अद्भुत देन नज़र आएगी । उसकी कुदरत के द्वारा वह स्वयं नज़र आएगा।
जीवों के शरीर की अंदर और बाहर की बनावट देखो;
दांत: दांत रूप चक्की से भोजन पीसने पर ही इस भोजन से हमारे शरीर की जरूरत के मुताबिक आवश्यक तत्व बनकर, संबन्धित अंगों तक अपने आप पहुंच जाना, सांस प्रणाली, खून बनाने वाली प्रणाली, मल मूत्र के द्वारा अंदर से शरीर साफ़ करने की प्रणाली, शरीर का तापमान, ब्लड प्रेशर तथा और भी बहुत कुछ नियंत्रण करने वाली प्रणाली, दिल, कंप्यूटर जैसा दिमाग, आँखें....इतने सब की गिनती करनी भी मुश्किल है।
हम लोग बिना ध्यान दिये अपनी आँखें झपकाते हैं । असल में होता यह है कि आँखों के अंदर ऊपरी तरफ से पानी टपकता रहता है, जो कि असल में केवल पानी नहीं, इसमें सूक्ष्म कीटाणु मारने की समर्था होती है । सो दवाई युक्त यह पानी आँखों में ऊपर से टपकता रहता है तथा हमारी आँखों के झपकने से इस के वाइपर चलते रहते हैं । जिससे हमारी आँखें धूल मिट्टी तथा कीटाणु से रहित होकर साफ़ रहती हैं तथा आँखों में नमी बानी रहती है । जो आँखों की सुरक्षा के लिये बहुत जरुरी हैं ।

हमारे मस्तिष्क के आसपास दो कान हैं। जिन द्वारा कोई आवाज़ हमे सुनाई देती है, एक कान ने आवाज़ कितने समय में सुनीं तथा दूसरे कान ने कितने समय में, और दोनों कानों का आपस में कितनी दुरी है। इस प्रकार बनें त्रिकोण से ट्रिग्नोमेट्री के फार्मूले से मस्तिष्क अंदाज़ा लगाता है कि आवाज़ किस दिशा से और कितनी दुरी से आई है । यदि यह  कैलकुलेशन ना होता तो मालुम ही नहीं होना था कि आवाज़ किस दिशा से आई है । यह कुदरत का करिश्मा है तथा  कुदरत के किसी नियम में  ख़ुद  की कोई सूझ बुझ नहीं है ।
इस से स्पष्ट है कि कुदरत तथा कुदरत के नियम के ऊपर भी कोई है, जो यह सब डिजाइन कर रहा है ।
कुदरत की सभी कृतियों को समझने के लिये तो कितनी जिंदगियां निकल गई, कितनी निकल रही हैं और कितनी निकल* *जाएंगी । पर कारीगर की कृति की कोई सीमा नहीं है ।

तो सभी विचारों का सार यही है कि परमात्मा के अस्तित्व  को मानना कोरा अंध विशवास नहीं है । और परमात्मा के अस्तित्व से असहमत होना अज्ञानता है।  वह आदि, जुगादि से सच है।  निर्पक्ष सोच से उसके अस्तित्व के बारे में विचार करते हुए वो कुदरत में अवश्य दिखाई देता है ।

*Seriously

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